Monday, March 24, 2014

जो हम कह ना सकें


हर कोई अपनी बात को लोगों तक पहुँचाने के लिए कुछ ना कुछ माध्यम अपनाता है चाहे वह कोई भी हो। माँ अपने बेटे तक अपनी बात पहुँचाने के लिए अपनी सेवा सहित हर उस छोटी छोटी बात के ख्याल कर बेटे को जता देती है कि उससे कितना प्यार करती है। पिता भले ही उपर से सख्त हों लेकिन वक्त बे वक्त अपनी संवेदनाओं को जाहिर करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। चाहे वो एक आम इन्सान या कोई बहुत ही बड़े सेलीब्रेटी ही क्यों ना हों। अब रही बात बेटों की तो इसमें थोड़ी सी कंजूसी आसानी से देखी जा सकती है। बात हम अपने आस पास की करें तो ये बातें हम यूँ ही राह चलते हुए देख सकते हैं। आधुनिक कहे जाने वाली संतान कहती है कि ये तो उनके फर्ज था, सो ये तो उनको करना ही था। कुछ और मॉडर्न ख्याल की संताने कहती हैं कि, पैरेंन्टस तो अपनी मस्ती मना रहे थे,उसी के नतीजे के रुप में हम पैदा हो गये हैं। अब भला उनको कोई कैसे समझाये कि आज के इस सोंच तक आप को पहुँचाने के लिए माता-पिता ने कितने पापड़ बेले।
लेकिन संवेदनाएँ मरी नहीं हैं। आज भी लोग हैं जो श्रवण कुमार की याद ताजा कर देते हैं। माता पिता को भले ही अपने कंधे पर बिठा कर तीर्थ यात्रा तो नहीं करा रहें हैं लेकिन वो भाव रखते हैं। अमिताभ बच्चन अपनी माँ के देहान्त के बाद बिखरते से नजर तो आये  थे । लेकिन अपनी सारी शक्ति को समेट कर माँ के साथ हर उस पल को समेट कर रखा जो उनके दिल के बेहद करीब था। ये बात साफ जाहिर कर दिया कि क्या अहमियत थी उनके जीवन में माता-पिता की। अब एक सवाल यह भी उठता है कि अमिताभ के किए को तो सबों ने देखा लेकिन बनारस के उस कन्हैया के किये को किसी ने नहीं जाना जिसने अपने देवता समान माता पिता के लिए हर संभव प्रयास किया बचाने के लिए शरीर का एक एक अंग बेचकर उनको लम्बी बीमारी से मुक्ति दिलाई। मैं खुद अपने दिल के हर उस कोने से मुबारक देना चाहता हूँ। और उसपर गर्व भी करता हूँ कि गुमनामी में रह कर उसने वो कर दिखाया जो बड़े बड़े लोग नहीं कर सकते हैं।
अब मूल विषय पर बात करें
,कुछ बातें वो होती हैं जिन्हें हम कह नहीं पाते हैं, उनको कहने के लिए भावनाए सबसे ज्यादा बलवती होती हैं। हमें तो चाहिए उन भावनाओं की सहायता ले उन बातों को अपने आदर्शों तक पहुँचाने के लिए। बातों को जितना जल्दी हो कह देना चाहिए कहीं देर ना हो जाए। पुराणों में लिखी बातें मातृ देवो भव पितृ देवो भव, शत प्रतिशत सही हैं।

वक्त बदल गया..

अब वो समय नहीं रहा..
धीरे धीेरे कब वक्त बदल गया मुझे पता ही नहीं तल सका लेकिन अब हालात कुछ और हैं,कोई कहीं और बस गया है तो कहीं और। हमारे बीच इतनी गहरी खाई पैदा हो गई है कि शायद माउन्ट एवरेस्ट भी उस खाई में समा जाए। हमें दुख है तो महज खुद के छले जाने का बाकी ऐसा कुछ नहीं जिससे मैं किसी और के करीब मानूँ.. अपने विचारों को शब्दों में उतारने के लिए कलम ही सहारा है । तो ये भी है..
ज़िन्दगी की कमीज़ के
दोनों सिरों पर लगे
काज और बटन की तरह थे हम
वक़्त को
जब झुरझुरी आती थी
इस कमीज़ को ढूंढ़ कर
पहन लेते थे,
लेकिन बक्त बदल रहा है,
कल प्यार किया था हमने
नए बने प्रेमियों की तरह
कल साथ खडे थे हम,
घर में बने थे दो दरवाज़े की तरह, सरसराया करते थे हम
जिनमें हवाओं की तरह...
अब बह रही है गर्म हवा हमारे बीच

दुश्मनी के साक्षात प्रतीक बन

विचार आम जनता के

सफर के दौरान जनता के विचार...

16 वीं लोक सभा के चुनाव नजदीक होने के साथ ही लोग भी अपने इलाके के नेता  चूनने के लिए एक अलग तरीके से वितार कर रहे हैं। कोई सुरक्षा तो कभी प्रगति तो कोई सहुलियत की कामना कर रहा है। इन्ही के विचार जानने की कोशिश की .. 

एक मुख्यमंत्री ऐसा भी

एक साधारण इन्सान ...
ये जरुरी नहीं है कि हर कोई  एक ही समान हो, लेकिन आऐज के बहलते दौर में कुछ लोग अनुकरणीय भी हैं। कुछ ऐसे ही लोगों से मिलने का भी मौका मिला कुछ अंश यहाँ हैं।
एक अंश और भी ...
कुछ और बातों...
  



गोवा एक अलग नज़रिए से


गोवा देखने का नज़रिया ..

ये जरुर है कि चुनाव का समय नजदीक होने से लोग अपने नेताओं को बेहद नजदीक से जानने की कोशिश करते हैं। इसी प्रयास में गोवा की राजनीतिक हालात जानने की हमारी कोशिश रही जरा आप भी देखिए ..

1.


एक दूसरा अंश यहाँ है...


Wednesday, March 5, 2014

एक याद...

रोको मत टोको मत
सोचने दो इन्हें सोचने दो
रोको मत टोको मत
होए टोको मत इन्हें सोचने दो
मुश्किलों के हल खोजने दो
रोको मत टोको मत
निकलने तो दो आसमां से जुड़ेंगे
अरे अंडे के अन्दर ही कैसे उड़ेंगे यार
निकालने दो पाँव जुराबें बहुत हैं
किताबों के बाहर किताबें बहुत हैं।।।।

जीवन एक फ़कीरी

जो सुख पाऊँ राम भजन में
सो सुख नाहिं अमीरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥
भला बुरा सब का सुनलीजै
कर गुजरान गरीबी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥
आखिर यह तन छार मिलेगा
कहाँ फिरत मग़रूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥
प्रेम नगर में रहनी हमारी
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥
कहत कबीर सुनो भयी साधो
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥