Thursday, June 16, 2016

जिम्मेदारी ऐसी थी कि .. सब भूल सा गया था..

अगर मैं के बजाय हम कहूँ तो कुछ नजदीकी ज्यादा जान पडेगा। दरअसल मैं अब केवल मैं नहीं रहा हम में बदल गया हूँ। मेंरे बिछडे मुझे मिल गए हैं। इन बिछडे लोगों की संख्या अब दिन ब दिन बढते ही जा रही है। इन बढते लोगों के चेहरे पर खुशी देख कर मुझे भी खुशी मिलती है।यही वजह है कि जब मैने जिम्मेदारी संभाली तो भूल गया कि आखिर कितनी रातों से नींद नहीं ले पाया था। लेकिन शुक्र है कि सब बेहद करीने से निपट गया। जैसे एक महायज्ञथा और उस यज्ञमें शरीक सभी अपने अपने विधाओं से लैस थे। उन विधाओं में कहीं कुछ मुख्य अध्याय छूट ना जाए इस लिए चहुओर नजर बनाए रखना जरूरी थी। इस लिए कुछ बातों को नजंरअंदाज कर दिया कि आखिर इस दौरन दिखता कैसे हूँ। मैं तो अपने आप को ही भूल गया था। सालों बाद ऐसा मौका आया था, एक शक्ति मिली थी। हालाकि कई मित्रों की कमी जरूर खली। लेकिन सब एक ही ओर सिमटता है...
असीम आकाश का निस्तार खुलापन,
अनजानी राहों में भटकते पंछी,
अपरिचित दिशाएँ खोजती हवाएँ,
बादलों के बनते बिगडते झुरमुट,
और इन सबको देखती आँखे
जो महसूस करती हैं-बिल्कुल निजी क्षण वह
पर कौन,कहाँ, किसे कितना कह पाता है!..