Saturday, September 8, 2007

गुरू जी की दुर्गति


वक्त बदलने के साथ समाचार के मायने भी बदलने लगे। ब्रेकिंग न्यूज देने के लिए होड़ सी मची हुई है। हर व्यक्ति समाचार देने के लिए अपने स्तर से नीचे गिरता और उठता है। हद तो तब हो जाता है जब खबरों को मसालेदार बनाने के लिए खबरों को तोड मरोड कर पेश करते हैं। शिक्षकों पर भी देहव्यापार के लिए अपने छात्रों पर दबाव डालने का आरोप लगाया गया। भले ही बाद में इसे झूठी खबर के लिस्ट में शुमार किया गया। देश का कोई भी कोना ऐसा नहीं रहा जहाँ शिक्षकों पर हमले ना हुए हों। ऐसा ना केवल दिल्ली में हुआ,ब्लकि देश का कोई कोना इससे अछूता नहीं रहा । हर जगह यही हाल रहा चाहे वो सुदूर पिछड़ा इलाका केरल रहा या अति आधुनिक बनने वाला राज्य महाराष्ट्र। हर जगह ज्ञान बाटने वालों की जम कर फजीहत हुई। इस दुर्गति के पीछे पर्दे में छीपे राजनेताओं ने खुले हाथ से राजनीति की। गाहे ब गाहे महिला मंडलों के जरिये अपने छिपे प्रतिद्वन्दियों की धुनाई भी करवाई, नाम दिया कि पीटने वाला व्यभिचारी है। शिक्षक दिवस हम जरुर मनाते हैं लेकिन उन बातों को बहुत पीछे छोड़ देते हैं कि गरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर महेश्वर, गुरुर साक्षात देवः । गुरु को नमन तो छोडिये मौका मिले तो गुरु की ही खाट खडी करने पर उतारु हो रहे हैं। अब तो कम से कम अपने अपने अंतरात्मा की आवज सुनना होगा जिससे इस तरह के बहकावे में ना आकर सही और गलत का कम से कम फैसला तो कर सकें। ऐसा नही है कि हर कोई सौ
फिसदी सही हो और ऐसा भी नही है कि कोई बिल्कुल ही गलत होता है। पहचान और सजा देने के हकदार हम नहीं खास करके ऐसे मामलों में। चेतना की बातें भी होनी चाहिए तभी इसका हल संभव जान पड़ता है।