Sunday, October 17, 2010

रावण एक बार फिर मरा... राम राज्य की उम्मीद..


रावण को तो एक बार फिर हमने मारा सदियों से मारते आ रहें हैं लेकिन रावण की संना रक्तबीज की तरह पनपते जा रही है। शायद इस बार इस पर रोक लग जाए और राम राज्य कायम हो। लेकिन किस तरह का राम राज्य आएगा ये समझना बेहद कठिन है। ना तो इस जमाने में कोई सीता है और ना ही राम, सबके अपने विचार हैं। कोई कहता है कि मैं श्रेष्ठ तो कोई कहता है कि नहीं मैं सही बाकी सारी कायनात झुठी। सदियों पहले कबीर ने सच कहा है.. कबीरा एह बाजा़र में भांति भांति के लोग कोई झूठ को सच बनावे किसकी का सच भी झूठ हो... (ये भावार्थ मैंने निकाला है, व्याकरण और विश्लेषण पर ना जाएँ।

Friday, October 15, 2010

गुरुर है मेरा...


मैने कभी भी स्वार्थ को पहले नहीं देखा है.., लेकिन हर बार मेरे उपर आरोप ही लगा कि मैं स्वार्थी और घमंडी हूँ। मैं मानता हूँ कि मैं घमंडी तो नहीं लेकिन अपने आप पर गुरुर करता हूँ। इसका कारण भी है कि एक तरह से हर कुछ खुद ही पाया है और उसके लिए जी तोड कोशिश भी की है.... जिन लोगों ने आरोप लगाया है, उनकी सफाई तो नही लेकिन मन के उद्गार जरुर इसी संदर्भ में कुछ पंक्तियों के रुप लिख रहा हूँ......

क्या अपने आप पर
गुरुर होना बुरी बात है?
जब किसी ने साथ ना दिया छण भर
तो अकेले चलना अजीब बात है!
हमसे तो सबों ने वादा लिया कर,
लेकिन निभाने का समय बहुत दूर है,

हमने तो कभी ये कल्पना नहीं की
चाहे शरीर में प्राण रहे या जी,
हर बार साथ चलने की मंशा सामने की
जबकि रास्ते में ही हाथ झटक दी,

अब जब जीवन है वीरान
तो ठान ली,
करने को अपने भाग्य का उत्थान
अब लोगों को है इस पर भी आपत्ति
तो क्यों ना मानू मैं इसे विपत्ति,

चलो मान लिया उन्हें आज भी है प्यार
देखते हैं तो मिलता है बदला हुआ व्यवहार
क्या चाहते हैं मुझसे, मनुहार?,
मुझसे तो हो न सकेगा ऐसा सत्कार,

जिस संबंध की नीव है स्वार्थ
तो क्यो कहते हैं कि करते हैं परमार्थ,

कहते हैं आइना कुछ नहीं छुपाता
लेकिन चेहरे के पीछे छिपे चेहरे को भी तो नहीं दिखाता,

इस हकीकत को आप भी जानते हैं,
क्या अब भी कहते हैं
कि अपने आप पर
गुरुर होना बुरी बात है।

Tuesday, October 12, 2010

नहीं मरुँगा मैं....

जो जीवन की धूल खाकर बडा हुआ है,
जो तूफानों में ख़डा हुआ है,
जिसने धरती को सोने में बदला है,
जिसने वक्त और लोहे को मोडा है,
जो रवि के रथ का घोडा है,
कोई और नहीं खुद का वजूद है,
वह मारे नहीं मरेगा,
नहीं मरेगा वो,
नहीं मरने दूंगा उसे....
लगभग एक अध्याय ज पूरा हो गया मेरे उस जीवन वृतांत का तभी मैंने इन पंक्तियों को लिखा है। अभी तो और पूरा जीव को ही कागजों में समेटना है कुछ और पंक्तियाँ लिखता जाउगा। चलिए इसी बहाने आप से मिलते भी रहंगे।

Tuesday, October 5, 2010

एक नया अनुभव......

ये वाकया है 26 सितम्बर का है जब मैंने अपने तथाकथित हितैषी लोगों से बात की। बात करके मन मस्तिष्क सिहर उठा कि लोगों मन में कुछ और रखते हैं और बोलते कुछ और हैं। जो भी भगवान करता है , अच्छा करता है। मैंने पिछले 4 मार्च से अपने साथ हुए अनाचार और अत्याचार को शब्दों में पिरो चुका हूँ। जल्द ही एक किताब कहें या लम्बे अभिलेख के सिलसिले में आपके सामने पेश करुँगा।.......