Tuesday, May 17, 2011

मोहसिन कौन...


आज ज्यादा लिखने का ना तो मन कर रहा है और ना ही फुरसत ही है। डॉक्टर के पास जाना है , पिछले कई दिनों से उलझन में था, उससे निकले के कोशिश कर रहा हूँ। इस उलझन में मैं जब जब अनयास बैठा रहता हूँ, उस समय कई विचार घेरते रहते हैं। कई बार तो सोंचते सोंचते मन कई दिशाओं में घूमने लगता है जिसे देखकर जीवन से ही विरक्ति होने लगती है। लेकिन मेरी विरक्ति से किसी को फायदा भी जरुर होता है... मेरी इस अवस्था पर वो बेहद जश्न भी मनाते हैं....।फिर भी आपका साथ है जिससे एक बार फिर बिखरने से पहले ही जुड जाता हूँ और यायावरी शुरु हो जाती है....


देख कर आवाम यही कहता,
हर बार ही रहता कहीं ख्वाबों में,
तो कहीं किसी का मुन्तजिर रहता हूँ,
मैं कहता हूँ कि मैं कोई मोहसिन नहीं
मसलक को ख़्याल कर चलता हूँ,
और ये कवायद बेज़ा नहीं मेरे मुन्सिफ
अपने आप को भूलने की,
कोशिश हर बार करता हूँ।