Tuesday, January 11, 2011

कुछ नहीं बदला....


आज सारे देश में हाहाकार मचा है प्याज की कीमत को लेकर। आजादी के लगभग 60 साल से भी ज्यादा बीत चुके हैं। हम और आप इसे बडे ङूम धाम से मानाते हैं, लेकिन पिछल 60 सालों में कुछ भी नहीं बदला आज भी पैदावार खराब होने से ज्यादा जमाखोरी से ही तबाही मच रही है। प्याज के खेल ने तो ये साफ कर ही दिया है। आज से लगभग 50 साल पहले बाबा नागार्जुन की कवित की कुछ पंक्तियाँ यही याद दिलाती हैं।


कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त ।
दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद
चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद ।