Tuesday, September 9, 2008

हर बार कि तरह एक बार फिर बेबस......,


साल दर साल लोग भले ही प्रगति करते जाए लेकिन हर बार कि तरह प्रकृति के आगे वेबस हो ही जाते हैं। बचपन से सुनते आ रहें हैं कि मधेस इलाके की शोक है कोसी। कुवांरी नदी कही जानेवाली कोसी के रौद्र रुप को देखकर भय लगना स्वाभाविक लग रहा है। हरबार की भांति अब स्थिती नियंत्रण से बाहर निकलती जान पडती है। हलाकि सरकार के हिसाब से सलाना इससे निबटने के लिए लाखो रुपये भी सरकार खर्च करने से गुरेज नहीं करती है, लेकिन आज के हालात में सब बेमानी नज़र आते हैं। हम उन्हें पिछडा कहे या भ्रष्टाचार में गले तक डूबे हैं ये कहे कुछ स्पष्ट नहीं है। लेकिन हाँ इतना जरुर कह सकते हैं कि वर्तमान बिहार सरकार के नियत में ही खोट है, जिससे मदद के हाथ ना तो बढ रहें हैं और ना ही सही मायनों पर मदद ही मिल पा रही है। लोग कि स्थिती देख कर ना कि दया भाव उमड़ता है ब्लकि क्षोभ होता है कि यही सरकार है जो खुद को जनता का हम दर्द कहती है। लेकिन सतहीतौर पर काम करने में वो बेहद ही नाकारा साबित होते हैं। अपने ही लोंगों के सामने ऐसी बातों को सामने लाते हैं कि यह कहना बेहद मुश्किल हो जाता है कि ये क्या करना चाहते हैं सचमुच ये मदद करना चाहते हैं या मदद के नाम पर कोइ ढोंग। हकीकत में ये मदद से ये कोसो दूर हैं केवल और केवल बस छलावा ही करते रहते हैं।
ये कोई मामूली बात नहीं है,कि लगभग 30 लाख लोग और 200 किलोमीटर तक बाढ की विनाश लीला फैली पडी है। हरबार ये एक ना एक नया बहाना बडी आसानी बना डालते हैं। इस बार का बहाना है कि कोशी के बाँध में दरार आया नेपाल सरकार के अनदेखी के कारण से। मतलब साफ है कि अपनी करतूत को छुपाने के लिए ये लोग नेपाल सरकार के मत्थे सार दोष मढना चाहते हैं। इसबार फिर से अपने आप को पाक साफ साबित करने के होड़ में लगे हैं ये माहानुभाव। वैसे तो होना ये चाहिए कि इस मुसीबत की घडी में ये लोग एक दूसरे का हाथ बटाएँ लेकिन ये एक दूसरे को ही नीचा दिखने के फिराक में हैं। इसी बेबसी के दौरान मैं एक ऐसे व्यक्ति से मिला जो खुद ही इस चक्की में पिस चुका था। अपने परिवार के अधिकांश लोगों को खो चुका वह व्यक्ति कभी एक दरवाजे पर दस्तक लगाता तो कभी दूसरे दरवाजे पर अपने अरदास लेकर के जाता। कहीं किसी अधिकारी का दिल पसीजे और कोई कार्यवाही हो कि जिन्दा ना हो सके तो कम से कम अपने रिश्तेदारों की लाशों को भी तो खोज निकाले जिससे उनके दाह संस्कार किया जा सके। हमने तो यह भली भांति देखा कि वो अफसर इन लाचार और बेबस लोंगों की बातों को सुनना तो दूर बात करने को तैयार नहीं। जब यह रवैया बरदाश्त नहीं हुआ तो कुछ कानूनी और ठोस कदम उठाने पडे जिससे उनकी सुनवाई हो सकी। हालात तब और सोचनीय हो जाते हैं जब इन लोगो को मदद करने के लिए तैयार दल बार बार नि:शुल्क अपनी सहायता के लिए तत्पर रहता है और ये कहते हैं कि इसके लिए कितने पैसे लेंगे। मदद के लिए तैयार लोग भी कभी ये सपने में नहीं सोच पाते हैं कि कोसी की इस रूद्र रुप से निपटने के लिए ऐसा भी होता है क्या? कुछ खबर ऐसी भी आयी कि मृतकों के शरीर को तलाश करने के लिए अधिकारियों ने उनके घरवालों से पैसे माँगे जो देने में समर्थ हुआ वो तो अपने घरवालों का दाह संस्कार कर पाया जो नहीं समर्थ रहा वो आज भी अपने लोगों के अंतिम संस्कार के लिए विभाग-विभाग का चक्कर लगा रहा है। ऐसा नहीं है कि लोगों ने मदद नहीं किया सबों ने खूब मदद किया। आप को शायद जानकर ये आश्चर्य हुआ होगा कि जहाँ इस प्रदेश के लोगों को नफरत की निगाह से देखा जाता है उन लोगों ने भी मदद किया भले ही वहाँ रहनेवाले लोग इसी प्रदेश के हैं। लेकिन एक बात भले ही मैं दबी जुबान से कहूँ लेकिन कहूँगा जरुर कि मदद के लिए सारे प्रदेश के लोग एक जुट होकर के नहीं आये,ये बात अगर किसी और प्रदेश में होती तो सभी बढ चढ करके आते।.. जरा आप भी अपने दिल से सोचिए क्या वो देश का एक हिस्सा नहीं है...क्या उनलोगों को मदद नहीं चाहिए ..रोडे अटकानेवालों को सबक नही सिखाना चाहिए...अफसर क्या जाने लोगों की आप बीती...