Thursday, July 24, 2014

एक कदम आगे

                         

               हमने एक कदम और आगे बढने की कोशिश की है। कहीं ये गलत तो नही.. ? ये सोच कभी ना कभी आपको भी कौंधता होगा। मेरे समझ से हर व्यक्ति इस बात से जरूर ही रूबरू होता है । लेकिन पिछले चार पाँच सालों में मैं ज्यादा ही आमने सामने हुआ हूँ ऐसे वाकयों से। लेकिन तब मैंने कदम भी नहीं बढाए थे। मन में एक बात जरूर थी कि शायद कदम बढाते तो कुछ हो सकता था। लेकिन कदम ना बढाने का कारण भी बेहद मजबूत रहा मेरे लिए, परिस्थितियाँ सामान्य नहीं थी, अपने आप ही कई अवरोधक आते रहे थे। मेरे समझ से वक्त के साथ हर माहौल बदल जाता है, और सोंच भी बदल जाती है। मैंने अपने सोंच में कई बदलाव लायें हैं, भले ही वो सोच कारगर हों या ना हो इसका विचार तो नहीं किया। लेकिन ये जरूर है कि हमने सोचा कि किसी भी तरह परिस्थितियों को सामान्य किया जाए, इस सिलसिले में कोशिश भी की। किसी ने कहा है कि सोंच भले ही कामयाब ना हो लेकिन कोशिशें कामयाब जरूर होती हैं....


उम्मीदों से दिल बर्बाद को आबाद करता हूँ,
मिटाने के लिए दुनिया नई ईजाद करता हूँ ।
तिरी मीआद--ग़म पूरी हुई ऐ ज़िंदगी खुश हो,
क़फ़स दूटे न टूटे मैं तुझे आज़ाद करता हूँ ।
जफ़ा-कारो मिरी मज़लूम ख़ामोशी पे हँसते हो
ज़रा ठहरो ज़रा दम लो अभी फरियाग करता हूँ।
मैं अपने दिल का मालिक हूँ मेरा दिल एक बस्ती है,

कभी आबाद करता हूँ तो कभी बर्बाद करता हूँ।