Tuesday, May 20, 2008

कमरतोड़ती मँहगाई


एक बात बार बार आपसे पूछने का मन करता है कि आपके जेब में आजकल पैसे रहते हैं कि नहीं ? मैं अपनी बात कहूँ तो शर्माते हुए कहना पडेगा कि 20 तारीख से मैं एक 50 को नोट बचा कर रखा हूँ कि अगर कहीं इमरजेन्सी पडेगी तो इसको खर्च करूगा, वरना वेतन आने तक इसे बचा कर रखूँगा। अगर मैं दिल की बात बोलूँ तो इसके लिए कई अपमान भी सहने पडे।जहाँ खर्च करने थो वहाँ कंजूसी से काम चलाया। अपने ही लोगों से नजरे चुराया। समझ में नहीं आ रहा था कि इस मंहगाई में काम चलाए तो कैसे। दुकानदार कहते हैं कि ग्राहक नहीं हैं। सवाल उठता है कि ग्राहक रहे भी तो कैसे उपनी रही सही जमा पूँजी तो सरकार और साहूकारों के हवाले चढ़ चुकी है। आखिर करे तो क्या करें, तन ढंके तो पैर से चादर सरक जाए और अगर पैर को ढंकने की कोशिश करें तो सर से चादर और छत दोनों ही गायब होने की नौबत आएगी। कई बार महगाई बढ़ने के सरकार ने अलग अलग तर्क दिये कभी वायदा बाजार को जिम्मेदार ठहराया तो कभी अंतरराष्ट्रीय कारणों को जिम्मेदार ठहराया। अपने ही देश में लोग खाने के लिए तरसने लगे। सब्जीयों की कीमतें आसमान पर छू कर आम इन्सान की पहुँच से कब की बाहर हो चुकी हैं। जबकि पश्चिमी देशों के जानकारों ने एशिया महादेश में हो रहे आर्थिक बदलावों को इस महँगाई का कारण बताया। कुछ नहीं मिल पाया तो वायदा बाजार को भी इस मँहगाई को बढाने में जिम्मेदार माना। अपने ही लोग आज भी भूखो सोते जागते रह रहे हैं। सरकार खुद ही उलझी है कि इस बढती हुई मँहगाई पर लगाम लगाए तो कैसे। कभी कुछ करती है तो कभी कुछ कहती है कि लोग ही ज्यादा खाने लगे हैं जिससे मँहगाई बढने लगी है। लगे हाथ व्यापार करने वालों की भी अगर बातें करें तो उनकी तो बल्ले ही है।खूब बिक्री हो रही है, हर जगह उनकी ही चाँदी ही चाँदी है। शहरी बाबूओं के पास ढेर सारे पैसे हैं, जिसको वो खर्च करने के लिए बस जरिया ढूँढ रहे हैं। रोज ही एक नई दुकान और बडी अट्टालिकाओं की तरह “मॉल” खुल रहा है। जहाँ लोग दनादन खर्च कर रहे हैं।
अब बात सरकारी महकमे की करें तो उनको इससे कोइ लेना देना ही नहीं है। सरकार चलाने वाले नेता अपने आलीशान सरकारी महलों में बैठे सरकारी पैसे पर आराम से पसर कर रह रहकर के कुछ कह देते हैं। जिससे सरकारी स्तर पर मँहगाई को रोकने छलावा लोगों को दिया जा सके। अगर हम और आप मँहगाई से लड़ भी लें, लेकिन गाँव के किसान और केवल घर में एक आदमी ही कमाई करने वाला हो तो उसकी हालत कैसी होगी इसकी कल्पना से ही सिहरन होने लगती है। कई लोंगों से मैं मिला उन्होने तो यही कहा कि अगर परिवार का पेट पालने के लिए कहीं दूर देश में चाकरी और मजदूरी करनी पडे तो उसके लिए कोई गुरेज नहीं है। कम से कम परिवार के लोग तो दो समय भरपेट खाना खा सकेंगे..जीना है तो संघर्ष करना ही है......