Wednesday, November 17, 2010

आखिर और कितने.....,


ये बात मैं अपनी नहीं कर रहा हूँ, अपने नेताओं के साथ सरकारी नौकरशाहों की कर रहा हूँ। जो हमारे देश को चलाने वाले एक तरह से पहरेदार हैं, लेकिन इस दस महीनों में इनके कारनामे जो सामने आए वो अज़ादी के पिछले 62 सालों में भी नहीं हुए है। पता नहीं इनकी भूख आम आदमी से कितनी ज्यादा है कि खाने के लिए करोडों रुपए डकार जातें हैं और हवा तक नहीं लगने देते हैं। साल की शुरुआत हुई हिमाचल में सुकना जमीन के घोटाले से जिसमें सेना के आधिकारी से लेकर रक्षा महकमा तक शामिल था, और इस तरह के घोटलों का सिलसिला चलता रहा महाराष्ट्र के आदर्श हाउसिंग सोसाइटी के घोटाले तक। मैने जब इंडियानामा में लिखने की शुरुआत की थी तो अन्दाज़ नहीं था कि इतने बडे घोटालों और ज़ालसाजियों से भी देश को दो चार होना पडेगा। कहीं नेवी में पैसे लेकर लोगों की भरती कराई गई तो कहीं पैसे के लिए देश की प्रतिष्ठा ही दांव पर लगा दी गई। कॉमनवेल्थ खेल के नाम पर कांग्रेसी नेताओं ने जम कर लूट खसोट की। भले ही सरकार ने इन नेताओँ को अपने पद से हटा दिया लेकिन सरकार की साख पर बट्टा लग ही गया।
ज्यादा विस्तार से ना जाकर अपने विषय को केवल आदर्श हाउसिंग सोसाइटी के मामले पर समेंटें तो देख तक अचंभित होना पडता है कि कैसे अपने फायदे के लिए नेताओं और नौकरशाहों ने फाइलों में हेरफेर करके अपने फायदे से घर हथिया लिया।आम आदमी सडकों पर रहे इससे इन नेताओं को कोई लेना देना नहीं लेकिन अपनी झोली भरने में कभी पीछे नहीं रहे। जब मौका मिला कानून की धज्जियाँ उडाकर अपना उल्लू सीधा करते रहे। जहाँ जहाँ हाउसिंग सोसाइटी के लिए फाइल जाती सभी अपने हिस्से के रुप में इक प्लैट लेने में कोई कोताही नहीं करते । जिसकी जितनी बडी हैसियत उतना ही बडा लालच का मुँह बाए अपना हिस्सा अपने हक में कर लेता था। जानकर अचरज तब और हुआ जब सूबे के मुखिया ही अपने लालच को रोक नहीं सके और अपने रिश्तेदारों के नाम पर फ्लैट चुपके से अपने पास रख लिए। जब मुख्यमंत्री जी ही इस तरह के मसले में लिप्ट हो जाए तो भला पीछे वाले बहती गंगा में हाथ धोने से पीछे क्यों रहे। उनके तो पौ बारह हो गए कि जब मुखिया ही चाहते हैं नियमों में फेरबदल कर दिए जाए तो लाभ उन्हें भी मिलेगा ही। जबकि तय था कि इस जमीन पर कारगील में शहिदों के लिए घर बनाए जाएँगे। किसी भी शहीद के परिवार को घर तो मिला नहीं, बल्कि नाम का खूब इस्तेमाल हुआ। इस सरकारी रवैये के बार में एक ही बात कह सकते हैं---- कहाँ तो तय था कि चिराग़ा देगें हर घर को यहाँ रौशनी मयस्सर नहीं पूरे शहर को.....