Monday, September 17, 2007

धारावी के कायापलट को तैयार जमीन के सौदागर, भाग-2,


दूसरे भाग में हम बताने की कोशिश कर रहें हैं कि आखिर इस प्रोजेक्ट में सरकारी रुख क्या है। एस .आर.ए. के नाम से ही बिल्डरों को भोले इन्सानों को ठग कर अपनी तिजोरियॉ भरने के कई मौके मिलने की संभावनाएँ जगने लगी। सरकार ने कमान कसने के लिए नियंत्रण खुद अपने ही हाथों में लेने का निश्चय किया। अपने कायापलट के कार्यक्रम में 10 चरणों में पूरे धारावी को बाँटा गया है,पहले चरण में 8 सेक्टरों का विकास किया जाएगा। 5600 करोड़ रुपये के इस प्रोजेक्ट में कई देशी और विदेशी टाउनशिप डेवलपर्सों से निवदा मँगाई है।यहाँ रहनेवाले लोगों को 225 स्कावर फीट का घर दिया जाएगा। यहाँ कई जोनों में सात मंजिले इमारत का निर्माण कर इन हजारों लोगों को वहीं रखा जाएगा। सबसे बड़ी बात घर उन्हीं लोगों को दिया जाएगा जो 1 जनवरी 1995 से पहले धारावी के बस्तियों में घर बनाकर रह रहे हैं। विस्थापन के दौरान,बिजली,पानी,टेलीफोन का खर्च विकास कार्य करनेवाले लोग उठाएगे जाहिर है,निजी कम्पनियॉ इसमें अपना लाभ देखेगी। साल 1971 में बने एस.आर.ए.अधिनियम में यह जाहिर है कि घर देने के बाद बचे जमीन का उपयोग डेवलपर्स अपने व्यवसायिक उपयोग कर सकते हैं,यही उनका स्वार्थ और लाभ निहित रहता है।
सबसे अन्त में यहाँ फैले हजारों स्मॉल स्केल इन्डस्ट्रीज पर ठोस निर्णय करने की बारी आती है। सरकारी वायदे के मुताबित इन 5000 कारखानों को सरकारी जाँच के बाद रजिस्टर्ड कर सारे छोटे उपक्रम के लाभ दिये जाएँगे। इनलोगों के लिए कुटीर उद्योग का दिया जाएगा। लेकिन सरकारी पेंच में इन उद्यमियों को अपने पिछले अनुभव से भय लगता है, कि कहीं इस बार फिर वे ठगे न जाए। दिसम्बर 2007 से इस प्रोजेक्ट के शुरूआत होने के बाद लगभग 3 से 4 साल लगेंगे, इन लोंगों को घर देने में। लेकिन विस्थापन की अवस्था में रोजगार चालू रखने का प्रावधान सरकार कर रही है। लेकिन सतही तौर पर इसको अमल लाने में कई उलझनें हैं। राजनौतिक पार्टियाँ चुनाव नजदीक देख कर मुद्दे को हवा दे रही हैं। जगह 225 से ज्यादा देने के लिए दबाव बना रही हैं. राज्य सरकार, निजी कम्पनियों और राजनैतिक पार्टियों के हस्तक्षेप के बाद प्रोजेक्ट पर सही तौर से काम करके उचित न्याय हो पाये, यही धारावी का असली कायापलट होगा।

धारावी के कायापलट को तैयार जमीन के सौदागर


मुम्बई शहर के बीचो बीच दिल के आकार में बसा धारावी, आर्थिक राजधानी में अपनी उपयोगिता सिद्ध करने में कोई कसर नहीं छोडता। धारावी 223 हेक्टेयर में फैला हुआ, लगभग 70 हजार लोगों को अपने आप में समेटे हुए है। 1909 में धारावी 6 बडे मछुआरा कॉलेनीयों को मिलाकर बना। जहॉ लोगों के जीवीका का आधार था अरब सागर की गहराईयों में जाकर के मछली पकडना और शहर सहित दूसरे शहरों में भी इनका व्यापार करना
फिर वक्त ने पलटा खाया शहर भर में फैले मिलों पर राजनीति का रंग चढ़ने लगा, मिलों मे ताला लगने लगे। अब मजदूरों के पास जीवन में संधर्ष के सिवा कोई और विकल्प नहीं बचा। पहले से सीखे काम के साथ नये काम के साथ नये काम को भी अपनाया। कपडा उद्योग के अलावा चमड़ा,बेकरी, जरीदारी, प्रिन्टिंग के साथ-साथ सौराष्ट्र से आये लोगों ने कुम्हारवाड़ा के नाम से एक मुहल्ला ही बसा लिया। कुल 5000 छोटे मोटे रोजगार होने लगे। अनुमान के हिसाब से लगभग 2000 करोड का व्यवसाय यहाँ से देश के कोने कोने में होता है। हर घर एक कारखाना है,जहॉ लोग रहने के साथ जीवन को बेहतर बनाने के लिए काम को इसका आधार बनाते हैं। फिल्मों में दिखाये गये धारावी का वर्णन भी कुछ हद तक सच है। इन गलियों में कई सही गलत काम को अनजाम देने वाले लोगों की बदनामीयों को भी अपने आप में समेटे हुए है धारावी। मुम्बई के अपराध की दुनिया में अपनी छाप धारावी ने कई बार छोड़ा है। यहॉ रहने वाले लोग मूल रूप से मछुआरे तो है ही समुद्र की गहराईयाँ नापते नापते अपराध के रास्ते पर कब मुडते हैं पता ही नहीं चलता।
दक्षिण भारत के लोगों का बाहुल्य है। देश के उत्तर क्षेत्र और दक्षिण भारत के मुस्लिमों का समुदाय भी बड़े पैमाने पर है, जो सिलाई और ज़रदोजी़ का काम बखुबी निभाता है। गुजरात और सौराष्ट्र के लोग मिट्टी के नायाब और खूबसूरत सामानों को बनाकर धारावी को नाम को और ऊँचा करते हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार से आये लोग भी अपनी जीविका का आधार इन तंग गलियों में ढूढते हैं।मुम्बई के मिलों से विस्थापित लोगों को भी शरण धारावी ने ही दी।
कई बार सरकार की नजर चमचमाते मुम्बई शहर के दिल पर टाट के पेवन्द की तरह लगती धारावी झुग्गी बस्ती पर नजर पड़ी। स्लम रिहाइबिलीटेशन स्कीम के तहत, इसे झुग्गी के जगह गगनचुम्बी इमारत में बदलने का फैसला किया है। शेष दूसरे भाग में.......