Monday, April 14, 2008
और क्या !
हालाकि शब्द बहुत ही छोटा है लेकिन इसके पीछे कितनी गहराई है यह कहना बेहद मुश्किल है। हर दिन कुछ ना कुछ रोज घटते रहता है।रोज रोज अपनी पहचान और राजनितिक गतिविधियों को तेज करने के लिए एक नया शिकार खोजते रहती हैं,राजनैतिक पार्टियाँ। अपने ही बुने जाल में अब फसने लगी हैं राजनैतिक पार्टियाँ। जब उनके मकसदों को लोग जानें तब तक वो अपने मकसदों में कामयाब हो चुकी रहती हैं। हाल फिलहाल में जब राजनैतिक पार्टियों ने अपने अपने क्षेत्रवाद को लेकर के मुद्दा बनाया तब तो उनके बाजार गरम हो गये। अगर हम इसी बात को गहरायी से समझे तो अपने आप में यह बहुत बडी बात है। हालत यह है कि, अपने स्वार्थ के लिए इनलोगों ने एक दूसरे को बांट दिया। वर्षों से चले आ रहे संबंधो में दरार पैदा कर दी इन लोगों ने।जो लोग पहले एक दूसरे को इज्जत की निगाह से देखते थे।अब वही हिकारत भरी निगाहों से देखते हैं जैसे परप्रान्ती कोई बहुत ही बड़ा मुजरिम हो। लेकिन कुछ बातें हैं, जो कि परप्रान्ती को शर्मशार करती हैं।उन बातों में तो सबसे ज्यादा है कि रहन सहन का तरीका बिल्कुल ही नहीं बदला भले ही वो अपने चौपाल पर बैठे हों। या किसी महानगर में हों। हो सकता है कि कई भाई यह बोलें भी यह बकवास है लेकिन मैं अपनी आँखों देखी बात बता रहा हूँ।
वाकया है 2006 के छठ पर्व का, मुम्बई के जुहू चौपाटी पर लाखो लोग जमा हुए थे छठ पर्व को मनाने। हर किसी ने अपनी दुकान सजा रखी थी। कोई कांग्रेस, कोई समाजवाद का नारा, तो कोई भारतीय जनता पार्टी का झंडा बुलंद कर रहा था। और तो और कोई शिवसेना का ही जयघोष कर रहा था और पूजा करने आनेवाले लोगों के साथ बढचढ कर हिस्सा ले रहा था। रही सही कसर सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने पूरा कर दिया था। लाखो की भीड अपने चहेते कलाकार को देखने सुनने के लिए जमा हुए थे। लेकिन लड़कियों और औरतों के साथ बदतमीजी करना भीड़ मे जमा मनचलों की पहली पूजा थी। ये और कोई नहीं वहीं परप्रान्तीय भाई थे, हद तो जब हो गयी जब चहेते कलाकारों ने उन्हें शराफत से रहने की नसीहत दे डाली। जुहू समुद्र तट का रेत कब कलाकारों का सिरमौर बन गया पता ही नहीं चला। कलाकारों के गुहार लगाने के बाद भी हुड़दंगपने मे कोई परिवर्तन नहीं आया। संक्षेप में जम कर लोगों ने अपने चाल चलन का परिचय देकर सबों को शर्मसार कर दिया।
आमतौर पर ऐसी घटना पूरे समाज को नीचा दिखा देती है, लेकिन इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योकि यही इनकी फितरत रही है। अब राजनेता इसी बात को भूनाना चाहते हैं। मुम्बई के लोग इनके इस तरह के पूजा पाठ का विरोध कर रहे हैं तो उल्टे उन्ही पर नास्तिकता का ठीकरा फोड़ रहे हैं। चाहे जो भी हो दोनों तरफ से तलवारें खिंच चुकी हैं और नीरीह आम जनता कर सर बेधड़क कट रहा है। इसे रोकना भी हमें ही होगा। ---वसुधैव कुटुम्बकम्!
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