Tuesday, October 12, 2010

नहीं मरुँगा मैं....

जो जीवन की धूल खाकर बडा हुआ है,
जो तूफानों में ख़डा हुआ है,
जिसने धरती को सोने में बदला है,
जिसने वक्त और लोहे को मोडा है,
जो रवि के रथ का घोडा है,
कोई और नहीं खुद का वजूद है,
वह मारे नहीं मरेगा,
नहीं मरेगा वो,
नहीं मरने दूंगा उसे....
लगभग एक अध्याय ज पूरा हो गया मेरे उस जीवन वृतांत का तभी मैंने इन पंक्तियों को लिखा है। अभी तो और पूरा जीव को ही कागजों में समेटना है कुछ और पंक्तियाँ लिखता जाउगा। चलिए इसी बहाने आप से मिलते भी रहंगे।