Wednesday, March 30, 2011
खेल या युद्ध ....
कहते हैं कि खेल खेल होता है लेकिन क्रिकेट एक ऐसा खेल बन गया है केवल खेल भर नहीं रह गया है। खास कर यह खेल अगर भारत और पाकिस्तान के बीच हो तो और भी क्या कहने लोग बेतहाशा भागते रहते हैं। खैर मैं कोई शिकायत नहीं कर रहा हूँ लेकिन कुछ ना कुछ तो सोचना चाहिए जरुर कि आखिर ये कब तक और कैसे संभव हो सकेगा कि खेल जंग के मैदान में तब्दिल होते रहेंगे। ये जरुर है कि हर देशवासी चाहता है कि खेल में विजय उसके देश के हिस्से में आए लेकिन अगर यही खेल भावना के रुप में रहे तो बेहतर है। भारत और पाकिस्तान के बीच मोहली में सेमीफाइनल का मैच के दौरान सारे देश में जैसे कर्फ्यू लग गया हो उस तरह का माहौल था। सडको से लोग नदारद थे। हर जगह एक ही चर्चा कि किसी तरह या मैच भारत ही जीते।लोग अपने काम छोड कर मैच देखने में व्यस्त थे। ऑफिस में खालीपन पसरा था। जूनून इतना कि बस कहिए मत... कुछ पंक्तियाँ नजर हैं आपके लिए.....
देखता क्रिकेट
एक आदमी
सूखी-सी डाल पर
तालियाँ बजाता है
एक-एक बॉल पर
मन में
स्टेडियम प्रवेश की
चाहत तो है
लेकिन हैसियत नहीं
इतनी ऊँचाई पर
भीड़-भाड़ गर्मी से
राहत तो है
लेकिन कैफ़ियत नहीं
भागा है काम से
नहीं गया
आज वह खटाल पर
दिखता है
ख़ास कुछ नहीं लेकिन
भीतर है
नन्हा-सा आसरा
इधर उठेगा
कोई छक्का तो
घूमेगा स्वतः कैमरा
पर्दे पर आने की
यह ख़्वाहिश
कितनी भारी आटे-दाल पर ।
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