Saturday, July 19, 2014

क्या हम दोस्त बन सकते हैं ?


ये बात बेहद ही व्यक्तिगत है लेकिन इंडियानामा में इसलिए लिख रहा हूँ , क्योकि ये हर भातीय के हृदय से जुडा है। हर कोई इस दुविधा में है कि आखिर संबंधो को कैसे आगे लेकर बढे। अगर कोई अहम आडे आ जाता है, भगवान ही मालिक है। बहरहाल आपको पहले कुछ पंक्तियों में समेटने के बाद पूरा विवरण विस्तार से बताता हूँ ।

दो चार बार हम जो कभी हँस-हँसा लिए
सारे जहाँ ने हाथ में पत्थर उठा लिए
रहते हमारे पास तो ये टूटते जरूर
अच्छा किया जो आपने सपने चुरा लिए
चाहा था एक फूल ने तड़पे उसी के पास
हमने खुशी के पाँवों में काँटे चुभा लिए
सुख, जैसे बादलों में नहाती रही हों बिजलियाँ
दुख, बिजलियों की आग की बादल में हम नहा लिए
जब ना लिख सके कोई नज्म तो हमने यही किया
अपने कलम से हमनें खुद को ही घायल कर लिए
अब भी हमारे किसी दराज में मिल जाएँगे किसी को
वो सूखे फूल , वो उपहार जो हमने अपने दोस्त को कभी ना दिए..

क्या हम दोस्त बन सकते हैं......?.सालों बाद ये बात हमसे उस व्यक्ति ने पूछा जिसे हम दोस्त ही नहीं जीवन में बहुत कुछ मानते थे.. मानते हैं... और शायद मानते भी रहेंगे.. ये जरूर है कि वक्त के साथ मायने जरूर बदले। लेकिन मेरा विश्वास कायम रहा। मैं अपने इस करीबी कहे जाने वाले व्यक्ति से बात भी बेहद ही इत्तेफाक से हो गई। हालाकि इस बात को वो जरूर आरोप लगा चुके हैं, इत्तेफाक नहीं मेरी चालाकी थी। येजरूर है कि मैं चाहता था कि बात करुँ हर पहलू पर चर्चा करूँ और सिलसिला शुरु करने के लिए लिखता लेकिन उसे कभी भी ना तो जाहिर करता और ना ही भेजने का प्रयास करता। य़े सुनिश्चित जरूर करता है कहीं किसी के उमंग के जीवन में खलल ना पडे। भले ही मेरे साथ जो हुआ या जो हो रहा है इस बात को जाहिर ना करूँ, कभी किया भी नहीं लेकिन व्यथित हुआ तो लेखनी को सहारा बनाया। लेकिन कब वो इलेक्ट्रॉनिक जामने में पोशिदापन रहा ही कहाँ लिखापट कब सामने प्रकट हो गया मुझे पता ही नहीं चल सका। जब पुरजोर आपत्ति हुई तो अपनी गलती का अहसास हुआ कि आखिर मैने किया क्या। निर्णय लियाकि आइंदा से ऐसा नहीं होगा इसबाद पर बेहद ही ध्यान रखूँ। लेकिन लापरवाह जीवन में एक बार भी गलती हो ही गई। इस का दोष मैं जरूर भारत सरकार को दूँगा... आप भी कहेंगे कि पागल हो गई है.. गलती खुद करता है और दोष किसी और पर। दरअसल भरतीय रेल के सफरने ये सब चुगली की। जेब में रखे मोबाइल में लिखा मैसेज डिलिट करने के बाद आखिर सेन्ड हो ही गया। शायद डिलिट ही जल्दी में ना हो सका हो। लेकिन कुछ भी हो गलती तो है मेरी इसे सुधारना होगा ही क्योकि इस बार उलाहना के साथ जबरदस्त विरोध भी आया। ये जरूर है कि आगे से मैं बेहद ही खास रूप से ख्याल रखूँगा, किसी के जीवन में रूकावट ना बनूँ.. । दोस्त बनने की बात पर इतना जरूर कहूँगा,, ये तो निर्भर उसपर होता है जो बातों को समझ सके कि आखिर दोस्त बनाने की इच्छा रखते हैं क्या दोस्ती करने के बाद निभा पाएँगे..

दोस्ती जब किसी से की जाये,
दुश्मनों की भी राय ली जाये
मौत का ज़हर है फ़िज़ाओं में,
अब कहाँ जा के साँस ली जाये,
बस इसी सोच में हूँ डूबा, 
कि ये नदी कैसे पार की जाये, 
मेरे माज़ी के ज़ख़्म भरने लगे,
आज फिर कोई भूल की जाये ।

खैर अब फिर से मैं आप लोगों से मुखातिब हो रहा हूँ. दोस्ती जो एक शब्द है अपने आप में बेहद ही गंभीर अर्थ समेटे हुए है। कृष्ण द्रौपदी के दोस्ती जग जाहिर है। शायद ही दो अलग अलग विचार भिन्न अवस्था के लोगों में ऐसी दोस्ती देखने को मिले। लिखना तो बहुत कुछ था लेकिन इतने पर ही रोकता हूँ.. फिर कभी इस मुंद्दे पर कई उदाहरण आपके सामने रखूँगा।