Monday, May 26, 2008

तेल का खेल.... कहीं कंगाल तो कहीं मालामाल...!


आपने कभी सोचा होगा कि तेल इतना असर डाल सकता है, हमारे रोज रोज के खर्चे पर। लेकिन ये हुआ, और अब तो हालात ये है कि तेल ने अपना असर न केवल एक क्षेत्र पर दिखाया है, बल्कि हर ओर बखूबी अपनी महत्ता को दिखा गया। हम और आप समझते हैं कि मँहगाई ने हमारी और आपके बजट को बिगाड़ कर रख दिया है लेकिन कुछ लोग या यूँ कहें तो बेहतर होगा कि कुछ देश को मालामाल कर रहे हैं। खास कर के अमेरीकी हो या तेल के कुँए कहे जाने वाले पश्चिम एशिया देश हों। इस खेल ने हर किसी को एक अलग तरीके से ही असर डाला है। हल्ला है कि क्रुड ऑयल की कीमत आने वाले दिनों में 200 डॉलर प्रति बैरल तक हो जाएगा। बात सच है आज से मात्र एक साल पहले इसी तेल की धार 70 से 85 डॉलर प्रति बैरल के हिसाब से आसानी से अपने देश में लाया जाता था लेकिन अब यह धार इस कीमत में केवल सपना मात्र रह गया है। मैं सोचा करता था कि ये क्रुड ऑयल मुआ क्या बला है जो कि हर किसी के थाली में से अच्छे पकवान तक गायब कर जा रहा है। जनाब यही वह बुनियाद की ईंट है जो दिखाई नहीं दे रहा है और मकान को मज़बूती दिये हुए है। अगर यह ईंट कमजोर निकली को मकान भरभरा कर गिर जाएगा। वही है मरदूत क्रुड ऑयल, अगर हमारे देश में यह बहुतायत में मिलती तो तेल निकालने वाले देशो के तरह हम भी इस प्रकृति के नायाब तोहफे का दोहन करते और भले कुछ और नहीं उपजाते लेकिन अपनी ही शर्तो पर दुनिया को रखते जब चाहे कीमतों में उछाल लाते और जब चाहे कीमतों में गिरावट लाते। अव मूल रुप से सवाल उठता है कि आखिर क्रुड ही क्यों असर डालता है। भाई जवाब साफ है कि हमारी सारी अर्थनीति अब निर्भर करती है इस तेल के कमाल पर। भले ही कपडे बनाने कि लिए उपयोगी पॉली फाइबर हो या दवाओं को बनने में लगने वाला पेन्सिलीन हो ये सभी क्रुड ऑयल से ही बनते हैं। जहाँ अब इतनी बातों पर निर्भरता बढ़ती जाती है ये क्रुड अपना क्रूर रुप क्यो भला ना दिखाये। एक तो अपनी स्थिती ऐसी है दूसरी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रहे राजनीतिक उठापटक और भी परेशान कर रहे हैं,जिससे हमारी ही जनता मँहगाई जैसे दानव से दो चार होते रहती है। ऐसी परिस्थितियों में जनता दोनों ही पातों में पीसती नजर आती है। हलाकि इसके बीच का रास्ता केवल और केवल सरकार ही निकाल सकती है। लेकिन सरकार तो अपनी ही मकड़जाल में उलझती नजर आ रही है। एक ओर कोई निदान नहीं निकलता दूसरी ओर अपनी ही मंत्रियों के गलत बयानी पर सफाई देती फिरती है। मंत्री हैं कि अपने लोगों के सामने शेखी बघारने से बाज नहीं आते हैं। जनता है कि यही सोचती है कि मंत्री जी ने बहुत ही बढिया कहा इससे तो विदेशीयों सहित हमारी विरोधी पक्ष को मुँह सील जाएगा। सील तो अपना मुँह भी जाता है। उसमें अनाज का एक कण भी समाने लायक जगह सरकार सहित मातहत नहीं छोडते। अब अगर अन्न का दाना भी ना समाये तो सरकार के विरोध में बोलने की भी शक्ति नहीं रहती है। जिसका नतीजा है कि बस सरकार का गुणगान करते हैं, या तो चुप ही रहते हैं। लेकिन अब बरदाश्त से बाहर है क्योकि चूल्हे भी अब जलना बन्द हो सकते हैं क्योकि आसमान छूती तेल की कीमत से अब रसोई में ताला लगाने की नौबत आ चुकी है।हम और आप भले ही चीख-चीख कर अपनी गुहार लगायें लेकिन कान में तेल डालकर सोई सरकार कभी भी नहीं जगेगी। अब तो जागो सरकारी ठेकेदारों.......