
मैं हर बार घर जाते समय सदैव देखता रहता हूँ कि साँझ का तारा हमेशा सर उँचा करके खडा रहता है। भले ही रात का अँधियारा रहे या दुधिया चाँदनी लेकिन साँझ का तारा अपने जलवे बिखेरता है ही। देखने में एक सामान्य तारे की तरह दिखने वाला हर बार मेरा सहचर बनता है। इंडियानामा में मैं इसे शामिल कर चूका हूँ कि इंडियानामा ना केवल देश और प्रदेश भर का है ये तो पूरे विश्व भर में फैला है..इस पर कुछ तुकबंदी की है.. क्योकि मैं कवि कदापि नहीं हूँ....
पश्चिम की दिशा से निकला चटकीला तारा
देखने में था अकेला, कहते हैं इसे साँझ का तारा,
नई उम्मीदें नई उर्जा बिखेरता करता नई शक्ति का संचार
चाँद की दमकती रौशनी भी रह जाती केवल सफेद गोला,
रात के चारों पहर तक
दमकता राह दिखाता साँझ का तारा,
दूधिया चांदनी रात हो, या काली घनेरी रात
अपनी रौशनी हर किसी पे बिखेरता चाहे वीरा हो या नीरा,
लाखो करोडों के हेरफेर से दूर
उतराता,खिलखिलाता अपनी ही चमक से भरपूर
इस तारे को मैं निहारता छोड अपनी चाहतों को दूर-दूर,
लेकिन अपने ही लोग हैं कि इस तारे को निहारते देख करते हैं
मुझी पर वार पर वार