Monday, May 19, 2008

पधारो म्हारे देश में बमों की गूँज !




यह कहना गलत नहीं होगा कि पधारों म्हारे देश में आतंकवाद का साया मडरा रहा है। हर बार हम ये जरूर कहते हैं कि इस बार आतंकवादियों का मुँहतोड़ जवाब देने को हम तैयार हैं। लेकिन वक्त आने पर हमारी सारी तैयारी धरी की धरी रह जाती है। फिर एक बार हम एक दूसरे को ही संदेह की नजरों से देखने लगते हैं। हम और आप अपने किस्मत को रोते रहते हैं, और यहाँ लगभग 80 लोगों को आतंकियों ने अपने निशाने पर लिया। सैकड़ो घरो के चिराग बुझ गये, पीछे छुट गये बिलखते लोग। और सरकार है कि मुआवजे की घोषणा करके अपना पल्लू झाड़ ले रही है। खबरिया चैनलों ने चीख चीख कर सरकार के इस निक्कमेपन की फज़ीहत की, लेकिन सरकार ने बस अपने आप को बंद कर लिया है कुँए में बस यही उनकी दुनिया है। सरकार अपनी पीठ को थपथपा रही है कि हमने कुछ और आगे नही होने दिया है। अब सवाल उठता है कि आये दिन ये हो रहे धमाकों के जिम्मेवार कौन हैं। अपनी तरफ से इसके जाँच के आदेश को देकर के निश्चिन्त होते नजर आती है सरकार।
सरकार पर अपनी भडांस निकालने के चक्कर में, मैं अपको पधारों म्हारे देश में लोगों की दर्द की कहानी ही बताना भूल गया। शादी की अभी वर्षगांठ भी नहीं मनी थी कि, मौत के ने उनको अपने आगोश में ले लिया। दोनो ही एक दूसरे के साथ में ही दम तोड़ दिये। इस त्रासद घटना ने हर किसी के दिल को झकझोर कर रख दिया। जिस किसी ने इन लोगों के मृत शरीर को देख उसके आँसू रुकते ही नहीं थे। जहाँ अपने अतिथियों को दिल खोल कर आगवानी करनेवाले लोग अपने ही घर में अतिथियों के चलते खून से लतपथ बिखरे पडे हैं।राजस्थानी जहाँ अपने आन बान और शान के लिए जाने जाते थे वे आज अपने ही घरों में दहशत गर्दों की करतूतों की सज़ा भुगत रहे हैं। आँखों के सामने अंधेरा छा जाता है जब उन सारी बातों को याद करते हैं। घटनाएँ ऐसी हो रही हैं कि किसे भूलू और किस से अपने देश के सरकार को लज्जित करुँ कुछ समझ में नहीं आता। अगर पिछले कुछ सालों का ब्योरा लें तो हर बार सरकार के जरिये किये गये काम पर कोफ़्त होता है। इस परिस्थिती में हम केवल यही कह सकते हैं कि सरकार और उसमें समाये लोग केवल अपना ही लाभ देख रहे हैं। अपनी ही स्थितियों के साथ तो यही कहा जा सकता है कि जनता केवल और केवल उनके हाथ की कठपुतली है। उनके इशारों पर ही चलना अब मजबूरी है।
पधारो म्हारो देश में हमने तो अतिथियों को बुलाया है ना कि दहशत गर्दों को बुलाया है। अतिथि के नाम पर आनेवाले लोग किस तरह से व्यवहार करते हैं, यह तो कहना बेहद मुश्किल हैं। लेकिन हम तो दिल खोल कर यही कहते रहेंगे कि.... जीव जी पधारो म्हारो देश......!