Tuesday, November 23, 2010
कायनात.........
पढते पढते कई बार ख्याल आता है कि आखिर इस कायनात को बनाने वाले ने क्यो सोची होगी कि इतनी हसीन दुनिया को हमारे सामने रख दिया। हर बार कि तरह इन बातों को देखते देखते ज़ेहन में ख्वाब आने लगता है कि क्या कभी ऐसा भी वक्त आएगा कि इस कायनात बनाने वाल कारीगर से रु-ब-रु हो सकें। इसी दौरान कुछ पंक्तियाँ भी नज़रो के सामने हो आई...
कायनात के ख़ालिक़
देख तो मेरा चेहरा
आज मेरे होठों पर
कैसी मुस्कुराहट है
आज मेरी आँखों में
कैसी जगमगाहट है
मेरी मुस्कुराहट से
तुझको याद क्या आया
मेरी भीगी आँखों में
तुझको कुछ नज़र आया
इस हसीन लम्हे को
तू तो जानता होगा
इस समय की अज़मत को
तू तो मानता होगा
हाँ, तेरा गुमाँ सच्चा है
हाँ, कि आज मैंने भी
ज़िन्दगी जनम दी है
आपको कैसा लगा ? जानना चाहूँगा.....
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