Friday, August 17, 2018

एक युग का अंत

"
किधर है मेरा किसलय " ये वो शब्द हैं जो पटना गाँधी मैदान में गूँजे थे , देश की महान विभूति ने अपने बचपन को तब खोजा जब  महज 5 और 10 साल के बच्चों का अपहरण का दर्द हर कोई सह रहा था। बिहार के शासन को "जंगल राज " के नाम करण की शुरूआत इसी मंच से हुई थी साल 2005 में।युग पुरूष पूर्व  प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस जंगल राज का नाम करण किया था। मेरा किसलय ये शब्द जब मंच गूँजे तो क्षण भर के लिए ही सही अपार अर्थ और लोगों के जनमानस को झकझोर देने वाला रहा। आज भी उन के जरिए कही गई बातें सार्थक दिख रही है कि आखिर किस तरह से जंगलराज दशकों तक रहा। हालांकि हालात में सुधार हो रहे हैं और उत्तरोत्तर और भी सुधार हो सकते हैं। यह वही दौर था जब लोग तकरीबन तकरीबन अपने आप से जूझ रहे थे। 90 के दशक में तो पूरी तरह से जंगलराज बनना शुरू हुआ जो 2005 तक आते-आते पूरी तरह से बिहार में परिपक्व हो गया था। हालांकि इस दौरान बीजेपी की सरकार भी बनी ,लेकिन समस्या यह रही कि राज्य सरकार पर कोई बस नहीं चल रहा था। पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी के भाषण उनकी शैली और उनका व्यक्तित्व शायद ही कोई पा सके। सरल स्वभाव बेहद ही सारे तरीके से रहने की अदा अनयास सबका मन मोह लेती थी। पटना कॉलेज में हम लोग पढ़ते जरूर थे वहां स्टूडेंट यूनियन में कम्युनिस्ट पार्टी और कांग्रेस के लोगों का दबदबा था लेकिन मन में कहीं ना कहीं एक कोने में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद भी हिलोरे मार रहा था। कारण यही था कि उस समय भी जब जब खजांची रोड के ज्ञानदा प्रकाशन और राजकमल प्रकाशन की तरफ रुख होता, तो वहां अटल जी की कविताओं से रूबरू होने का अवसर भी मिल जाता। उन किताबों में से यदाकदा एक- आध कविता पढ़कर हम भी कवि बन जाते। लगने लगता था कि जीवन में यही है इसके अलावा कुछ है ही नहीं। याद है हमें कि उस समय राजनीतिक उठा पटक पर अखबारों में छपी हुई खबरें  हमारे हॉस्टल के न्यूज़ स्टैंड पर गरमा गरम बहस का कारण होती थी। बाद में अटल जी के शासन काल में  किए गए पोखरन परीक्षण पर हम दोस्त मिलकर ये जरूर चर्चा करते कि भारत अब एक सुपर पावर देश बन ही जाएगा। हमें यह ध्यान नहीं था कि इस परीक्षण के बाद कितनी चीजों पर हम पर पाबंदी लगी थी, सरकार किस तरीके से चलती है भले ही उस समय बहुत ज्यादा ज्ञात ना हो क्योंकि उस समय हमारे लिए TV कि दुनिया इतनी बड़ी नहीं थी 24 घंटे का न्यूज़ चैनल नहीं था। लेकिन यह लग रहा था कि भारत की गौरव की बात है। कॉलेज के दिनों में एक हॉस्टल से लेकर दूसरे हॉस्टल के छात्र आपस में जरूर कुछ ना कुछ मुद्दों को लेकर बहस करते थे उन दिनों यह भी मुद्दा एक हुआ करता था कि आखिर सरकारों ने हमारे लिया किया क्या। मुझे अच्छी तरह से याद है कि प्रधानमंत्री होते हुए अटल जी जब कर लो "दुनिया मुट्ठी में " की पहल की महज 500 रुपए में हर किसी के हाथ में फोन आया , भले ही आलोचक इसकी आलोचना करें , लेकिन सपने साकर तो हुए। आज स्वर्ण चतुर्भुज योजना पर सरकार काम कर रही है, इसकी शुरूआत अटल जी की ही देन है।
     अभी हाल ही में मुझे ये जानकर अचरज हुआ कि मंच की शोभा माने जाने वाले अटल जी कई बार लोगों से बिना मंच और जलसे के ही लोगों से मुखातिब हुए । गिरगांव में एक घर के छत से भाषण देकर लोगों का मन मोह लिया था। उनकी ही पंक्तियों में ....
बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।