Wednesday, November 24, 2010

ख्वाब ...


हर दिन आपसे से मुखातिब होने की चाह होती है लिहाजा कुछ अच्छा लिखता हूँ तो कभी कुछ तुक बंदियाँ कर लेता हूँ। कोशिश की है कि अपने ख्वाब को आपके सामने रखूँ लेकिन पता नहीं हकीकत लिख पाया हूँ। ये आप ही बता सकते हैं कि आखिर आप इसे क्या मानते हैं ........।


कल रात एक ख्वाब देखा,
समझ ना सका ख्वाब था हकीकत
या जीवन का धोखा,
लेकिन था जोर का झटका धीरे से,
कुए कब्रगाह में मेरी आँखे बन्द थी,
लेकिन धडकन-ए-दिल तेज थी,
इन्तजार था कि कोई अपना मेरे कब्र पर चिराग,
जला जाएगा
जिससे रौशनी मिले ना मिले कमोबेश
सूकून तो आ ही जाएगा,
लेकिन गोया ना तो कब्रगाह ही रौशन हूई,
ना ही कानों ने किसी के आने की आहट सुनाई।
ताज्जुब तब हुआ जब इस दरम्यां दिमाग ने कोई
चेहरा ही नहीं दिखाया,
उन्नींदी आँखे मशक्त के बाद खुई गई,
देखा दिन चढे सूरज निकल आया।