Sunday, December 5, 2010

हमारी लाचारी..


कल मेरे एक मित्र से बातचीत हो रही थी, बात कब हमारे देश की राजनीति तक पहुँच गई पता ही नहीं चला। लेकिन बातें दिलचस्प थी। अन्त में उन्होने कहा कि भाई अपनी बातचीत को विराम देते हैं और चार पंक्तियाँ भी उन्होने साझा की । वो पंक्तियाँ आपको भी मैं सुना रहा हूँ.....,
देखने में लगता हूँ बीमार,
हो सकता है आप भी मुझसे करें तकरार,,
लेकिन मेरा भी मन करता है करने को प्यार,
पर क्या करुँ मैं भी हूँ,
मनमोहन सरकार की तरह लाचार,
इन पेक्तियों में रहस्य बेहद गहरा है लेकिन इसे जाहिर करना उतना ही जोखिम भरा है जितना इसके नहीं जाहिर होने से । आपको केवल और केवल तुकबंदी लगे।...