Thursday, May 22, 2008
सरकार के हुक्कमरान
अभी एक दर्दनाक हत्याकांड की बातों को लोग भूल भी नहीं पाये थे, कि नोयडा निठारी हत्याकांड के बाद फिर दहल उठा, आरूषी के हत्या से। हुक्कमरान सकते में हैं कि इस घोर पाप का सूत्रधार कौन है। हरबार लोग इस शर्मनाक अपराध के लिए कभी सरकार के निठ्ठल्लेपन को ,तो कभी अपने आप को कोसते रहते हैं। एक घर में दो हत्याएँ होती है और पुलिसिया तुर्रा ये कि वह दो दिन लगाती है इसको पता लगाने में कि पहली हत्या कब हुई। दूसरी हत्या का पता लगता है उस मृत शरीर को मिलने के बाद जिसे लोंगों ने बताया वह भी दो दिन बाद। अब सवाल यह है कि क्या पुलिस केवल और केवल दिखावा ही करती रह रही है। थाने से महज 50 फर्लांग पर दूर रहे मकान के बारे में क्या हो रहा है किसी पुलिसिया हुक्कमरान ने जानने की जहमत नहीं उठाई। ये तो बात हुई राजधानी के निकट रहे शहर के बारे में। अब थोड़ा बात सबसे विकसित और महनगरी मुम्बई की भी सुन लें। एक घर में व्यक्ति की हत्या करके उसके 300 टुकडे किये जाते हैं फिर उन टुकडों को बैग में बन्द करके कहीं और ले जाकर के जला दिया जाता है। सवाल उठता है कि मारनेवाले के हाथों में कहीं कम्पन नहीं हुई होगी। मानवता तो भले ना जगे क्या मांस के टुकडों को देखकर कहीं विचलित नहीं होगा। मांस भक्षण करने वाले भी एक साथ इतना मांस देखकर के घबरा जाते हैं। लेकिन ये बात ही कुछ और है। कहाँ मर गयी है मानवता, किसने खोयी है इस लिजलिजे समाज में जीवन को। मैं ऐसा नहीं कि कमजोर दिल का इन्सान हूँ लेकिन जब देखता हूँ इसतरह के घृणित कृत्य को तो सहम कर के रह जाता हूँ। अभी बात ज्यादा दिनों की नहीं है कि सडकों पर बेतहासा दौड़ती गाडियों ने कई मासूमों को रौंद दिया था ,ये तो सरेआम कत्ल ही है।
हमने भले ये बातें आपको सुनाई है, लेकिन ये बातें आपसे छुपी नहीं हैं। अपनी इन हरकतों से शर्मसार किया है पूरे देश को। पहली घटना में शक की सूईया घर सहित घर से जुडे लोंगो तक घूमती रही हैं। लेकिन दूसरी घटना ने शर्म और भावना की हर हद को पार कर दिया। पहले की प्रेमिका ने हत्या को अंज़ाम दे दिया। इनको आप क्या कहेंगे हो सकता है कि आप ये कहें कि कोई मजबूरी होगी। लेकिन 300 टुकडे करना कौन सी मजबूरी, ये बात कुछ पल्ले नहीं पड़ती। खैर कोई बात नहीं मैं आपको यह कह रहा था, कि पुलिस को कोई भय और डर नहीं इनलोगों को कि इतने रोंगटे खडे कर देनेवाले काम कर दिये। बचपन की एक घटना याद आगयी , घर के करीब ही पुलिस ने चार डाकूओं को मारा था, और उनके लाश के साथ थाने में फोटो खिचवाये थे। उस घटना में एक पुलिस का जवान भी शहीद दो गया था। लेकिन उसके बाद सालों साल तक इलाके से डाकूओं का तो सफाया ही हो गया था। लेकिन अब तो अगर लोगों की कही बातों पर विश्वास करु तो पुलिस के भेष में ये डाकू हो गये हैं। निठारी से लेकर के आरुषी तक घटनाएँ चीख चीख कर यही कह रही हैं। रही सही कसर बदले की आग ने पूरी कर दी। सचमुच यह कौन सी बदलाव है समझना बड़ा मुश्किल –माटी रौदे कुम्हार को वाली कहावत सही हो गयी है....।
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