Sunday, March 7, 2010

माया ममता मोह जाल...


आपके सामने भी कई बार ये समस्या आई होगी कि किसी की भावनाएँ आपको कुछ करने ना करने के लिए उसका रही होंगी तो कभी रोक रही होंगी। या कोई इन बंधनों में बांधना चाहता होगा। मैं केवल और केवल माँ के साथ निस्वार्थ रुप से ममता के बंधन में जरुर हूँ। माँ भी मेरे साथ समान रुप से है। लेकिन आज कल समाज में और परिवेश मे इस तरह के अलग अलग बंधनों को बाँधने के लिए कई लोग तत्पर हैं जो दिखाने की कोशिश करते हैं कि मैं ही आप का हितैषी हूँ और आपका सबसे करीबी। गाहे बगाहे ज्ञान भी दे डालते हैं कि आप लोग अपने बुजुर्गों का ख्याल क्यों नहीं करते। लेकिन जब उनसे थोडा आग्रह ये उम्मीद करो तो उसी समय कहने लगते हैं कि मेरी तबीयत इतनी खराब है कि मैं तो बिस्तर से हिल ही नहीं सकता। ये हकीकत मुझे तब महसूस हुआ जब मेरे खुद के भतीजे की तबीयत ज्यादा खराब हुई। घटना होली के दूसरे दिन की है, अचानक से खराब हुए तबीयत को देख कर मैं भी घबरा गया। बदले हुए माहौल को देख कर अंदाज ही नहीं लगता था कि किया तो क्या किया जाए। लेकिन आनन फानन में डॉक्टर के पास ले गया और वहाँ भर्ती करा दिया। छोटे शहर का डॉक्टर डर के मारे इलाज में कोई कोताही नहीं बरतना चाह रहा था। हर संभव इलाज करके निश्चिन्त होना चाहता था। लेकिन क्लिनिक और हॉस्पिटल की अव्यवस्था को देखर विश्वास ही नहीं हो रहा था। उपर से क्लिनिक का इन्चार्ज डींगे हाकने में ही व्यस्त, कि अव्यवस्था के बावजूद राज्य के गवर्नर उसके क्लिनिक के दर्शन के लिए झुमेल लगाते हैं। क्लिनिक की अव्यवस्था को देखकर जल्द से जल्द भतीजे को वहाँ से ठीक करा कर घर ले जाने की फिराक में हम लोग थे। लिहाजा हम उस बिगडे व्यवस्था से जूझ रहे थे साथ ही भतीजे को जल्द स्वस्थ्य कराने की कोशिश भी।
इसी भागमभाग के बीच लगातार लोगों के फोन आते रहे हॉस्पिटल आने के लिए। समझ से परे था कि एक बीमार बच्चे से लोग मिलकर क्या जाहिर करना चाहते हैं या उसके परिवार वालों को ये दिखाने की कोशिश की आपकी चिन्ता हमें भी है। मैं कहता हूँ कि अगर सही में उनको चिन्ता थी तो शायद परिवारवालों से मिलकर अपनी बातों जाहिर कर सकते थे, तो शायद वो बेहतर होता। बार बार मुझे जताने की कोशिश कुछ समझ में नहीं आया। लगता है उन्होने अपने उस विचार को थोपने की कोशिश की कि वो मेरे वास्तविक हितैषी हैं। अगर शुभचिन्तक हैं तो मनषा कर्मणा और वचन से एक रहें दिखावा करने की चेष्टा ना करें तो बेहतर होगा। मैं तो कभी दिखावा में ना रहा और ना ही रहूँगा। लेकिन लोगों का आरोप है कि मैं ही दिखावा करता हूँ। खैर जो भी हो एक नया अनुभव दे गया ये वाकया। इस वाकये पर बरबस यही कहने को मन करता है कि जहाँ नहीं चैना वहाँ नहीं रहना.....

हकीकत ऐसा भी.....


हकीकत है कि कोई अपना कहने का आज भरे समाज में खोजने पर ही मिलता है। हर कोई यही कहता है कि संभव तभी है जब आप अपने पास हर किसी को देखे खोजे और समझे कि कोई तो है जो आप के पीछे दीवार की तरह अडिग है और जीवन भर रहेगा। लेकिन ना तो ये कभी होगा और ना ही ये समाज होने देगा। हमने बहुत सोचा कि इस बार तो विचार बदलेगा कुछ बातें हकीकत बनेंगी, लेकिन चालाक लोमडी की तरह एक दूसरे से आगे निकलने की होड में लोग कभी भी ये नहीं भूलते कि मानवता भी कुछ चीज है जिसे बडे मजे से जिया जा सकता है। सबसे बडा आश्चर्य तब होता है जब लोग जानते हुए भी इन बातों को दुहराते हैं जिससे ना तो सरोकार है और ना ही सुनने और महसूस करने में ही अच्छा लगता है। आप भी कहेंगे कि कहाँ बेसिर पैर की हाकने लगा है, कहीं कि बातें कहीं और जोड रहा है क्या कहेगा और करेगा क्या कुछ समझ में नहीं आ रहा है तो भाई मैं आप को बता दू कि मेरे कुछ अपने विचार थे उन्हीं को शब्दों के रुप में आप के सामने लाने की कोशिश कर रहा हूँ। विचार कहने से ज्यादा सटीक होगा कि ये वो हकीकत है जो खुद पर गुजर चुकी हुई है, इसलिए इसे अनुभव के दायरे मे रखना ज्यादा बेहतर होगा। आप के साथ के वो पल तो कभी भी हम नहीं भूल सकते हैं जब आपने हमें संबल दिया। संबल ऐसा वैसा भी नहीं, जब मैंने पब्लिक में लिखने की शुरुआत की उसी समय आप लोगों ने हौसले बढाए जिससे मैं और भी उत्साहित हुआ और बढचढ कर लिखने लगा। आपलोगों के हौसले ने मेरे लिए एक नई शुरुआत की काम की जिससे हमें लगने लगा कि आप मेरे परिवार के हिस्से हैं। ये ब्लॉग लिखने के पीछे वही कारण है, जिसे आप से मैं बाँट रहा हूँ।
आज मैं अपने उसी शहर में हूँ जहाँ पला-बढा, पढाई की और ढेरों मस्तियाँ भी, लेकिन ये शहर आज मुझे अनजाना सा लगने लगा है। चेहरे जाने पहचाने से लगते हैं लेकिन भावशून्य हैं। हर कोई बेगाना सा लगने लगा है, वो गलियाँ जिनमें भगा दौड़ करके दिन बीत जाया करता था अब नहीं लगता है कि वहाँ कभी वो उधम कूद हो सकेगी। हर कोई किसी स्वार्थ सिद्धि की लालसा में लगा रहता है। इन सबके पीछे कारण देखता हूँ तो लगता है कि बदलते समाज के चलते लोगों का नजरिया बदल गया है। कुछ परिवेश की राजनीति भी इसके पीछे का कारण है। जिसको मैं भली भाँति देख रहा हूँ समझ रहा हूँ लेकिन माहौल ऐसा है कि चुप रहना बेहतर समझ रहा हूँ आखिर देखें कब तक सहनशीलता जवाब नहीं हे पाता है। जब जवाब दे देगा उसी दिन संग्राम नहीं रण होगा जो बहुत भीषण होगा....