
हर कदम एक परीक्षा यही नियती है भले ही हमारी हो या आपकी, लेकिन सच्चाई यही है। ये परीक्षा आपने खुद के जीवन में कई बार दुहराई होगी। लेकिन आखिर में तन्हा ही दिखा होगा सारा आकाश। कभी तो खुद का जीवन ही पूरा का पूरा एक परीक्षा का मंच कहें या यो कहें, कदम कदम पर परीक्षा होने लगती है। लगता है कि तलवार की धार पर चल रहे हैं। कई बातें हैं जिनमें आगे बढने की होड़ हो या किसी और तरह का दबाब जिसमें लगता है कि तलवार पर चले चलें, भले ही खुद के पैर जख्मी हो जाए। जबतक साँस है तब तक तो चला ही जा सकता है। लोग भले ही सोंच सकते हैं इससे होगा क्या आखिर, ये तो बिल्कुल मूढ व्यक्ति है। मैं कहता हूँ कि ये तेरा, ये मेरा, ये मैं तभी तक है जब तक शरीर में जान और अहं है। जब यही नहीं रहेगा तो कौन किससे मेरा तेरा करता रहेगा। रही बात की आखिर इससे मिलेगा क्या । तो कुछ बातें होती हैं जिसमें घाटा नफा नहीं देखा जाता है केवल और केवल तम को जलाया जाता है। शरीर का तम जैसे जले जलना चाहिए यही एक मात्र उद्देश्य होना चाहिए। परीक्षाएँ तो कक्षाओं में पास बहुत ही की होगी आपने भी और हमने भी, लेकिन कुछ हैं कि चाहते हुए भी उन परीक्षाओं से बाहर नहीं आया जा सकता है, शायद इसे ही ज़िन्दगी की हकीकत कहते हैं.... दो विचार आपस में गुत्थम गुत्था कर रहे हैं...लगता है मैं विषय से विषयांतर हो रहा हूँ... आगे थोडा ही लिख रहा हूँ....
यह लडाई, जो कि अपने आप से मैने ठानी है,
यह घुटन, यह यातना, केवल किताबों में पढी है,
यह पहाडी, पांव क्या चढते,जो धमनियों के भरोसे चढी है,
सही हो या गलत है,
अब तो पथ यही है।