आज सचमुच मुझे अपने पुराने दिन याद आ गए। शायद ही मैं आज का दिन भूल सकूंगा, यह संभव है कि मैं आज का दिन कभी भी जीवन में ना भूलूँ। पिछले 10 सालों में जिन उलझन से गुजरा हूं उसने एक नई सीख दी है। मुझे ना कहने की आदत डालनी चाहिए हम सभी को खुश नहीं रख सकते। मेरी यह कोशिश कि हर किसी को खुश रखने का यह असंभव जान पड़ता है। लेकिन अगर व्यवहार के तौर पर देखे हैं तो हर किसी को खुश रखा भी जा सकता है। लोगों में अगर भावनाएं जगें विश्वास जगें तो यह कहना संभव जान पड़ता है कि , एक व्यक्ति दूसरे के काम आ सकता है। खैर अब आगे दूसरी बात करते हैं,,।
अभी हाल फिलहाल की घटनाओं को अगर देखें खास करके खबरों को तो कई चीज अपने आप में ही गुत्थमगुत्था की तरह उलझे हुए नजर आते हैं। परोक्ष यानी जो बीत चुका है उसी के आधार पर यह नई घटनाएं सामने आ रही है। उसमें आर्थिक अपराध की हो या किसी पर आरोप लगाने की हो लेकिन यह सही है कि बीते हुए कल पर ही आज आधारित है। हम दिन-ब-दिन अलग होते जाते हैं बढ़ते जाते हैं बलवती होते जाते हैं लेकिन अगर हम अपनी रूढ़ियों को अपने जड़ को भूल जाएं तो शायद ही हम बलवान हो और आगे बढ़े। इसलिए जरूरी है कि सबसे पहले हम अपने मूल को कभी भी भूले नहीं। उसके साथ-साथ बढ़ते रहें, इससे अपने आप में एक गर्व महसूस होता है और ऐसा लगता है कि हम सब एक साथ ही जुड़े हुए हैं।
आपको लगता होगा कि मैंने शुरुआत कहां से की और पहुंच कहां जा रहा हूं बीच में कहीं कोई तारतम्य दिख ही नहीं रहा है। यह सच है मैं लिखने की कोशिश कुछ और कर रहा हूं लिखता कुछ और जा रहा हूं क्योंकि मेरे दिमाग में कई ऐसी चीजें चल रही है जिसे मैं आपको बताऊं क्योंकि मैं आपसे बहुत दिनों से दूर रहा हूं। सब चीज धीरे-धीरे एक सीधी लकीर में आते जा रही है जल्द ही सारी चीजें सुलझ जाएंगी और फिर से आपको मैं सटीक और व्यवहारिक तौर पर वही चीज बताऊंगा जिसे आप सुनना चाहें या मैं आपको सीधे सीधे तौर पर बताना चाहूंगा। तो चलिए शुरुआत के लिए इसे ही मान लें और एक बार फिर से आपसे मुखातिब होते हुए श्री गणेश है यह.....!
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खामोशी बयां कर देती है सब कुछ,
जब दिल का रिश्ता जुड़ जाता है किसी से...!