Monday, April 4, 2011

यमराज को संदेश....


मैं बराबर सोंचता हूँ कि हमारे आस पास जो भीड लगी है आखिर वो किस लिए लेकिन ये बात मेरी समझ से परे चला जाता है। कई बार इस मसले पर पिता जी से बहस भी हुआ है। पिता जी कहते हैं कि समाज है आर मनुष्य को समाज में रहना ही है इस लिए सारे लोकाचार को निभाना भी है और हर संभव हो तो इस भीज में भी रहना है।लेकिन इस भीज में रहते रहते हुए मुझे घुटन महसूस होती है क्योकि हर चेहरे के पीछे एक चेहरा थिपा नज़र आता है इसे मैं फिर कभी बताऊगा. एक शब्द में बोलू तो मैं इस रेल पेल से उकता गया हूँ... लगे हाथों मेरी इस उकताहट एक कविता रुप में निकल पडी पता नहीं आपको कैसे लगे।
मैं अपने आप में घुलकर हो गया बीमार था, यार-दोस्तों का हुजुम भी श्रद्धांजलि को तैयार था रोज़ अस्पताल आते हमें जीवित पा निराश लौटे जाते
एक दिन हमने खुद ही विचारा और अपने चौथे नेत्र से निहारा देखा चित्रगुप्त का लेखा
जीवन आउट ऑफ डेट हो गया है शायद यमराज लेट हो गया है या फिर उसकी नज़र फिसल गई और हमारी मौत की तारीख निकल गई यार-दोस्त हमारे न मरने पर रो रहे हैं इसके क्या-क्या कारण हो रहे हैं
किसी ने कहा यमराज का भैंसा बीमार हो गया होगा या यम ट्रेन में सवार हो गया होगा और ट्रेन हो गई होगी लेट आप करते रहिए अपने मरने का वेट हो सकता है एसीपी में खड़ी हो या किसी दूसरी पे चढ़ी हो और मौत बोनस पा गई हो आपसे पहले औरों की आ गई हो
जब कोई रास्ता नहीं दिखा तो हमने यम के पीए को लिखा सब यार-दोस्त हमें कंधा देने को रुके हैं कुछ तो हमारे मरने की छुट्टी भी कर चुके हैं और हम अभी तक नहीं मरे हैं सारे इस बात से डरे हैं कि भेद खुला तो क्या करेंगे हम नहीं मरे तो क्या खुद मरेंगे वरना बॉस को क्या कहेंगे
इतना लिखने पर भा कोई जवाब नहीं आया तो हमने फ़ोन घुमाया जब मिला फ़ोन तो यम के फोन ये आवाज़ आई थोडा... थोडा इंन्तज़ार का मज़ा लिजिए.. फिर एक कडक आवाज़ बोला... . .कौन? हमने कहा मृत्युशैय्या पर पड़े हैं मौत की लाइन में खड़े हैं प्राणों के प्यासे, जल्दी आ हमें जीवन से छुटकारा दिला
क्या हमारी मौत लाइन में नहीं है या यमदूतों की कमी है
फिर मेरे सवाल पर यमराज कडक आवाज़ में बोला...नहीं कमी तो नहीं है जितने भरती किए सब भारत की तक़दीर में हैं कुछ असम में हैं तो कुछ कश्मीर में हैं
जान लेना तो ईज़ी है पर क्या करूँ हरेक बिज़ी है
तुम्हें फ़ोन करने की ज़रूरत नहीं है अभी तो हमें भी मरने की फ़ुरसत नहीं है
मैं खुद शर्मिंदा हूँ मेरी भी मौत की तारीख निकल चुकी है और मैं अब भी अभी ज़िंदा हूँ।