Monday, September 17, 2007

धारावी के कायापलट को तैयार जमीन के सौदागर


मुम्बई शहर के बीचो बीच दिल के आकार में बसा धारावी, आर्थिक राजधानी में अपनी उपयोगिता सिद्ध करने में कोई कसर नहीं छोडता। धारावी 223 हेक्टेयर में फैला हुआ, लगभग 70 हजार लोगों को अपने आप में समेटे हुए है। 1909 में धारावी 6 बडे मछुआरा कॉलेनीयों को मिलाकर बना। जहॉ लोगों के जीवीका का आधार था अरब सागर की गहराईयों में जाकर के मछली पकडना और शहर सहित दूसरे शहरों में भी इनका व्यापार करना
फिर वक्त ने पलटा खाया शहर भर में फैले मिलों पर राजनीति का रंग चढ़ने लगा, मिलों मे ताला लगने लगे। अब मजदूरों के पास जीवन में संधर्ष के सिवा कोई और विकल्प नहीं बचा। पहले से सीखे काम के साथ नये काम के साथ नये काम को भी अपनाया। कपडा उद्योग के अलावा चमड़ा,बेकरी, जरीदारी, प्रिन्टिंग के साथ-साथ सौराष्ट्र से आये लोगों ने कुम्हारवाड़ा के नाम से एक मुहल्ला ही बसा लिया। कुल 5000 छोटे मोटे रोजगार होने लगे। अनुमान के हिसाब से लगभग 2000 करोड का व्यवसाय यहाँ से देश के कोने कोने में होता है। हर घर एक कारखाना है,जहॉ लोग रहने के साथ जीवन को बेहतर बनाने के लिए काम को इसका आधार बनाते हैं। फिल्मों में दिखाये गये धारावी का वर्णन भी कुछ हद तक सच है। इन गलियों में कई सही गलत काम को अनजाम देने वाले लोगों की बदनामीयों को भी अपने आप में समेटे हुए है धारावी। मुम्बई के अपराध की दुनिया में अपनी छाप धारावी ने कई बार छोड़ा है। यहॉ रहने वाले लोग मूल रूप से मछुआरे तो है ही समुद्र की गहराईयाँ नापते नापते अपराध के रास्ते पर कब मुडते हैं पता ही नहीं चलता।
दक्षिण भारत के लोगों का बाहुल्य है। देश के उत्तर क्षेत्र और दक्षिण भारत के मुस्लिमों का समुदाय भी बड़े पैमाने पर है, जो सिलाई और ज़रदोजी़ का काम बखुबी निभाता है। गुजरात और सौराष्ट्र के लोग मिट्टी के नायाब और खूबसूरत सामानों को बनाकर धारावी को नाम को और ऊँचा करते हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार से आये लोग भी अपनी जीविका का आधार इन तंग गलियों में ढूढते हैं।मुम्बई के मिलों से विस्थापित लोगों को भी शरण धारावी ने ही दी।
कई बार सरकार की नजर चमचमाते मुम्बई शहर के दिल पर टाट के पेवन्द की तरह लगती धारावी झुग्गी बस्ती पर नजर पड़ी। स्लम रिहाइबिलीटेशन स्कीम के तहत, इसे झुग्गी के जगह गगनचुम्बी इमारत में बदलने का फैसला किया है। शेष दूसरे भाग में.......

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