
एक उलझाव है, वो ये कि शहर आखिर बदल क्यों रहें हैं। हर शहर के साथ लोगों का मिज़ाज बदल रहा है। लोग एक दूसरे से नफ़रत करने लगे हैं। कोई सुनने को तैयार नहीं है दूसरे कि बात। शायद मैने नहीं सोचा था कि लोग ऐसे भी होंगे। पिछले दिनों कई वाकयों से रु-ब-रू होने का मौका मिला। सोच कर बेहद अफसोस होने लगा। माना कि वो समाज के सभ्रांत तबके से हैं, लेकिन कमजोरों के साथ इस तरह तो व्यवहार नहीं किया जा सकता। वाकया है रोड पर हो रहे एक्सीडेन्टों का। एक्सीडेन्ट तो किसी से हो सकता है लेकिन सड़को पर चल रहे दूसरे लोगों लम्बी गाडियों पर चलने वाले लोग शायद कीडे मकोडे की तरह समझते हैं। लिहजा उन्हें कुचलने में कोई संकोच नहीं होता। मुम्बई के छत्रपति शिवाजी एयरपोर्ट पर की घटना ज्यादा ही व्यथित कर देती है। छोटी सी बात पर किसी की जान ले लेना कहाँ तक की मानवता है, कौन कह सकता है कि ये किसी साभ्रांत व्यक्ति का काम है। एक दूसरे से आगे चलने की होड में आपसी बहस ने झगडे का रुप अख्तियार कर लिया। उँची गाजी में चलने वाले जनाब ने उसे अपनी बडी गाडी के नीचे कुचल डाला। ऐसी ही एक घटना दिल्ली में हुई थी। जिसे कोई भूल नहीं सकता। अपनी स्कार्पियो गाजी से पडोसी को कुचल कर मारने वाला व्यक्ति और उसके बाद जश्न मनाने वाला हर किसी के जेहन में कौंध जाता है।
आखिर कारण क्या है इस तरह की घटनाओं का। समझ में आता नहीं दिमाग पर जोर देने पर भी कहीं कुछ समझ में नहीं आता था। लिहाजा मैं चला गया किसी मनो वैज्ञानिक से इस बारें में पूछने। जब हकीकत पता चली तो मेरे तलवे के नीचे से ज़मीन ही सरकने लगी। मनो वेज्ञानिक ने कहा कि लोगों का असंतोष बढने लगा है, क्योकि आपसी विश्वास रहा ही नहीं। इसके साथ ही आगे निकलने की होड में लोग एक दूसरे का दुश्मन समझने लगे हैं। रही सही कसर राजनीतिक पार्टियाँ पूरी कर देती हैं। जिससे लोग एक दूसरे के खून के प्यासे होने लगे हैं। इन पार्टियों ने लोगों के मन में ये बातें भर दी कि आपसे हक का भाग कोई और खा रहा है जिससे लोगो शांत रहने के बजाए उग्र हो रहे हैं।
कई बार मेरे दिमाग में ये ख्याल आता है कि उग्र होने और मार पीट करने से आखिर मिलेगा क्या ? एक उम्मीद है कि वो व्यक्ति जो गलती कर गया भविष्य में नहीं करेगा। लेकिन उग्र होने से जरुर वो अपने अपमान का बदला निकालेगा। भले ही मैं अभी मजबूत हूँ तो मेरे सामने ना निकाले लेकिन किसी और के सामने तो वो जरुर ही निकालेगा। ऐसा नहीं कि मैं उग्र नहीं हूँ लेकिन मेरी उग्रता ने मुझसे कई चीजें छीन ली है। उनके अमूल्य निधी के बारे में सोंचता हूँ तो हर बाद आँखें नम हो जाती है। अपनी कहानी है कबँ तो किस से। इस लिए चाहता हूँ कि आप कभी अपना संयम ना खोए कहीं मेरी गलती आप ना दुहरा दे, जिससे हर बार आपको पछताना पडे। फिर भी आप को क्षमा भी नहीं मिले.....
1 comment:
संयम बहुत जरुरी है.
विचारणीय आलेख!
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