
मैने कभी भी स्वार्थ को पहले नहीं देखा है.., लेकिन हर बार मेरे उपर आरोप ही लगा कि मैं स्वार्थी और घमंडी हूँ। मैं मानता हूँ कि मैं घमंडी तो नहीं लेकिन अपने आप पर गुरुर करता हूँ। इसका कारण भी है कि एक तरह से हर कुछ खुद ही पाया है और उसके लिए जी तोड कोशिश भी की है.... जिन लोगों ने आरोप लगाया है, उनकी सफाई तो नही लेकिन मन के उद्गार जरुर इसी संदर्भ में कुछ पंक्तियों के रुप लिख रहा हूँ......
क्या अपने आप पर
गुरुर होना बुरी बात है?
जब किसी ने साथ ना दिया छण भर
तो अकेले चलना अजीब बात है!
हमसे तो सबों ने वादा लिया कर,
लेकिन निभाने का समय बहुत दूर है,
हमने तो कभी ये कल्पना नहीं की
चाहे शरीर में प्राण रहे या जी,
हर बार साथ चलने की मंशा सामने की
जबकि रास्ते में ही हाथ झटक दी,
अब जब जीवन है वीरान
तो ठान ली,
करने को अपने भाग्य का उत्थान
अब लोगों को है इस पर भी आपत्ति
तो क्यों ना मानू मैं इसे विपत्ति,
चलो मान लिया उन्हें आज भी है प्यार
देखते हैं तो मिलता है बदला हुआ व्यवहार
क्या चाहते हैं मुझसे, मनुहार?,
मुझसे तो हो न सकेगा ऐसा सत्कार,
जिस संबंध की नीव है स्वार्थ
तो क्यो कहते हैं कि करते हैं परमार्थ,
कहते हैं आइना कुछ नहीं छुपाता
लेकिन चेहरे के पीछे छिपे चेहरे को भी तो नहीं दिखाता,
इस हकीकत को आप भी जानते हैं,
क्या अब भी कहते हैं
कि अपने आप पर
गुरुर होना बुरी बात है।
4 comments:
अपने आप पर गुरूर करना कोई बुरी बात नहीं है.
आपके विचार के लिए धन्यवाद
gurur hona aur magrur hone ka v ek fark hota hai.....
चलिए अपने अपने विचार हैं। लेकिन अगर अपना परिचय भी बताते तो बेहतर था।
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