Friday, November 26, 2010
आज अचानक से ख्याल आया कि रोज कि भाग दौड में हम का तो करते बही सब हैं हम से हमारी संस्थाने जो चाहतीं हैं। लेकिन इन कामों के बीच में मैं अपने आप को तन्हा ही मानता हूँ। इस लिए कुछ बातें आपके सामने ला रहा हूँ। ये एक आम बात है आज इंडिया( इस शब्द का में इस्तेमाल अपने ब्लॉग की वजह से करता हूँ) का हर एक आदमी अपनी इसी उधेड बुन में है कि कहीं तो उसे सही राह मिलेगी।
मैं और मेरी तन्हाई....
जीवन के उतार चढाव में हर बात,
मैने ना ही छुपाई और ना तो किसी के दिल को ही दुखाई,
लेकिन हर बार लोगों ने मुझे अनेकों आरोपों से रु-ब-रु कराई,
अब हाल है,
आवारा है गलियों में,
लेकिन मैं देख रहा हूँ अपनी तन्हाई,
जाएँ तो जाएँ कहाँ हर मोड पर है रुसवाई,
दिखने में चेहरे तो लगते हैं ये फूल से गुलदस्ते,
लेकिन अपने ने ही मेरा खून किया हँसते-हँसते
ना तो लोग ना तो रास्ते,
इस बेगाने जमाने में कोई भी अपना नहीं अनजाने हैं सब रास्ते,
राहें हैं तमाशाई,
राही तमाशाई,
केवल मैं रह गया अपने इन्हीं शब्दों में,
मैं और मेरी तन्हाई.......
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1 comment:
आपकी कविताएँ पढी, सच है आज अपने देश का हर आदमी अपने आप को तन्हा महसूस कर रहा है... भला हो इस ब्लॉग की दुनिया का जो लोग कम से कम विचारों सो तो एक दूसरे से जुडते जाते हैं। हम तो कू से आप से जुड चुके हैं.. अब तो तन्हा नहीं कारवाँ बनाने की बारी है....।
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