Thursday, January 13, 2011

बडे दिनों के बाद दर्शन होंगे.....


अर्सा बीत गया अपने मित्रों से मिले हुए। एक रिवाज था हम लोगों के बीच मिलते ही कहते थे जय हो... , जब सुखविन्दर ने गाना गाया जय हो तो, सुखविन्दर से कम खुशी हमें भी नहीं हुई। किसकी खुशी ज्यादा थी कहना मुश्किल है। महज चार दिन की छुट्टियाँ हैं इन्हीं छुट्टियों में सब कुछ ठीक करना है। मिलना तो अपने मित्रों से हैं ही साथ में कुछ और निर्णय भी लेने हैं जो बेहद खास हैं...।
खैर ये बातें तो अब जीवन का एक हिस्सा बन गई है। लेकिन सबसे ज्यादा इन्तज़ार है कि पिता जी से मुलाकात होगी, माँ के बारे में एक बार इसी ब्लॉग में बता चुका हूँ। लेकिन इस बार पिता जी के दर्शन करने की इच्छा ज्यादा है और वो पूरी होगी। शायद इस बार गंगा के भी दर्शन हो जाए उत्कट इच्छा है जो शायद इस बार पूरी हो जाए....चलें फिर जल्द मुलाकात होती है।

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