Sunday, April 17, 2011

सांझ..


हर बार मन तो करता है कि ढेर सारी बातें लिखू लेकिन समय के अभाव और विचारों के संकुचन के लिए ऐसा हो नहीं पाता है। लेकिन मेरी कोशिश यही रहती है कि मैं आपको इंडियानामा में अपने देश प्रदेश के हर छोटी बडी चीजों से रु-ब-रू करवाऊ। कोशिश करता हूँ पता नहीं सफल हो पा रहा हूँ या नहीं। अभी पिछले दिनों शाम के धुँधलके से पहले मैं मुंबई के नरीमन प्वाइन्ट पहुँचा। अतिशय भीड तो थी लेकिन मैं अपने आप में तन्हा था। कभी सूरज की समुद्र में डूबती किरणों को देखता कभी दूर समुद्र से अपने डेरे को लौटती नाव को देखता जो कि लहरों के थपडे से किनारो तो नहीं आ पाती। लकिन भरपूर प्रयास क बाद भी संभव नहीं लगता दिखता। हार का नाव और नाविक अपने आप को लहरों के हवाले छोड देते। मुझे ध्यान आया कि कुछ ऐसे ही मझधार में जिन्दगी भी फँसी रहती है......

दूर से आती नावों ने भी
गिरा दिये हैं अपने पाल
मल्लाहों के गान में शिखर सूर्य-से तपते
तार-स्वरों की लय में वो लपक नहीं बाक़ी
पानी में डूबे चप्पुओं में त्वरा नहीं
लहरें भी हो चली हैं ध्यान-मग्न
जाती धूप के साथ डूब चले हैं अँधेरे की परते में
मछेरों के जाल
किनारों पर ठहरी अनमनी नावों के मस्तूल
और दूर-दराज़ जहाँ-तहाँ चमकते हुए
फुनगियों के फूल
पक्षियों के ध्यान में भी उतर
आयी है,घोंसलों में तैरती-डूबी रात
चमक रहे हैं दूर,बहुत दूर
मन्दिरों के धुँधले होते कलश और त्रिशूल
और... कहीं-कहीं पानी और रेत-लहरों की लकीर
दूर पार हवा भी चुपचाप ठहरी है
मैं भी खड़ा हूँ;ठगा-सा
डूबती साँझ की गोद में.लहरों में साक्षात् घिरा
जा रहा हूँ आज, कल फिर आऊँगा शायद,
कोई राह निकल जाए जिन्दगी जीने की हठात्......

1 comment:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सुन्दर प्रस्तुति ..प्रकृति से सीख लेती हुई ...अच्छी रचना