Thursday, November 8, 2012

जंगल जीव दायी.....


सतपुड़ा के घने जंगल। नींद मे डूबे हुए से ऊँघते अनमने जंगल। झाड ऊँचे और नीचे, चुप खड़े हैं आँख मीचे, घास चुप है, कास चुप है मूक शाल, पलाश चुप है। बन सके तो धँसो इनमें, धँस न पाती हवा जिनमें, सतपुड़ा के घने जंगल ऊँघते अनमने जंगल।

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