अब वो समय नहीं रहा..
धीरे धीेरे कब वक्त बदल गया मुझे पता ही नहीं तल सका लेकिन अब हालात कुछ और हैं,कोई कहीं और बस गया है तो कहीं और। हमारे बीच इतनी गहरी खाई पैदा हो गई है कि शायद माउन्ट एवरेस्ट भी उस खाई में समा जाए। हमें दुख है तो महज खुद के छले जाने का बाकी ऐसा कुछ नहीं जिससे मैं किसी और के करीब मानूँ.. अपने विचारों को शब्दों में उतारने के लिए कलम ही सहारा है । तो ये भी है..
ज़िन्दगी
की कमीज़ के
दोनों सिरों पर लगे
काज और बटन की तरह थे हम
वक़्त को
जब झुरझुरी आती थी
इस कमीज़ को ढूंढ़ कर
पहन लेते थे,
दोनों सिरों पर लगे
काज और बटन की तरह थे हम
वक़्त को
जब झुरझुरी आती थी
इस कमीज़ को ढूंढ़ कर
पहन लेते थे,
लेकिन
बक्त बदल रहा है,
कल
प्यार किया था हमने
नए बने प्रेमियों की तरह
नए बने प्रेमियों की तरह
कल
साथ खडे थे हम,
घर
में बने थे दो दरवाज़े की तरह,
सरसराया
करते थे हम
जिनमें हवाओं की तरह...
अब बह रही है गर्म हवा हमारे बीच
जिनमें हवाओं की तरह...
अब बह रही है गर्म हवा हमारे बीच
दुश्मनी
के साक्षात प्रतीक बन
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