राम को घर आये सदियाँ बीत चुकी हर बार हम उनके घर आने को धूमधाम से मनाते हैं। जिससे लोग उनके कष्ट भरे दिनों को याद करें और उससे कुछ सीख ले सकें। 14 सालों का बनवास कोई मामूली बात नहीं थी,वो भी एक सुकुमार राजकुमार के लिए जो कभी भी पैदल चला तक न हो। माल कि मात्र ये कोरी कल्पना है तो भी एक हद तक बेहद सटीक है। राम अपने पूरे कूनबे के साथ जंगल और पहाड़ो की खाक छानते रहे, अपने पिता की शपथ को पूरा करने में कोई भी कसर नहीं छोड़ी। रघुकुल की मर्यादा की जो बात ठहरी। बात जब शपथ की आती है तो हम अनयास ही अपने शपथ को लेकर के थोड़े से ज्यादा ही संवेदनशील होने लगते हैं।अब सदियों से जलनेवाले इुन दीपकों को ही ले ये जलते हैं कि इस बार तो सारी दुनिया को रौशन कर देंगे। लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है। हर बार अपने पूरे दम से प्रयास तो करते हैं लेकिन उसमें सफल नहीं हो पातें हैं। अपने आप को भी जलाकर के सारे संसार के अन्धकार को मिटाने में वो सफल नहीं हो पाते है। लेकिन जलने में एक मजा उसे आता है । हर किसी को यह तो बता देता है कि केवल अपने स्वार्थ के लिए जीना तो आसान है लेकिन यदि अपने स्वार्थ से उपर उठ कर किसी और के लिए थोडा़ सा भी एक कदम आगे बढा़ते हैं तो बड़ा सुकुन मिलता है। हम और आप सोचते रहते हैं करने वाला काम कर जाता है। इस थोड़े से उमर भर के लिए एक बार भी कुछ अच्छा सोंचे तो हर एक व्यक्ति अपने आप में एक आयाम खड़ा कर सकता है जिससे फिर कभी जलने की जरुरत नहीं पड़ेगी।
अब बात करें अपने गुजरात की, कहाँ तो तय हुआ था कि यह एक ऐसा प्रदेश होगा जिसमें कोइ भेदभाव नही होगा। लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ, और किसी ने करने का मन बनाया उसे भी रोका गया। राम के नाम पर राजनीति जम कर लोगों ने की आखिर चुनाव जो है। हर किसी को छूट मिलनी चाहिए सो लोगों ने पुरजोर कोशिश लगा रखी है। अपनी अपनी कमानों से तीर को निकाल कर धनुष पर चढ़ा चुके हैं कि कब हम उन्हें इस मसले पर घेरे जिससे विरोधी पक्ष की फजीहत हो।नारे खूब लग रहें हैं लोगों को आपस में जुझाने की दबी-दबी तैयारियाँ भी हो चुकी है। भगवान ना करे कि लोगों की बुद्धि में फिर से शैतान घर कर जाए और लोग एक बार फिर मरने मारने पर उतारु हों जाए। याद तो उन्हें दीपक को करना चादिए कि कैसे खुद जलता है और दूसरों को राह दिखाता है। अब ना तो राम हैं ना ही दीपक सो जनाब लोग तो यहाँ हर बात जायज मानते हैं। खैर देखे चुनाव के और कौन- कौन से रंग होते हैं।
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