Thursday, December 20, 2007

सफ़र के राही


आज पहलीबार सफऱ करते करते लिखते का मन कर रहा है, सो लिखने बैठ गया हूँ। कई बाते आ और जा रही हैं कि कहाँ से शुरुआत करुँ। एक विचार आया कि कुछ राजनिति की बातों को आपको बताऊ, लेकिन बात हमारी इंडियानामा की है तो सोचा सफर के दौरान लोगों की बातों को ही आपको सुनाऊ। आखिर भारत के लगभग 6 लाख गाँवो से भी आपका परिचय भी तो कराना है। सफर पर निकल पडा अपने ही लोगों के साथ रास्ते भर हर तरह के लोग मिलते गये। भाषाएँ अलग रहन सहन अलग बोलचाल में एक दूसरे की बातें समझने में असमर्थ लेकिन एक चीज की समानता थी, खाने के मामले पर सभी करीब-करीब साथ ही थे। अपने ही लोंगों के साथ होने से थोड़ा ज्यादा लोग सुरक्षित महसूस कर रहे थे। अब यदि एक उस व्यक्ति की बात करें जो बिलकुल ही अनजान उन नये रास्तों से तो हम उसे बेबस ही मानेंगे लेकिन वह भी अपने आप में मस्त है। कुछ लोग और ही समझ कर अपनी ही दुनिया अलग बसा लेता है।या तो कोइ किताब पढ़ता है या कोई पेपर से ही अपने मुँह को ढाँप लेता है। जिससे ना तो वो दूसरों को देख सके और ना ही दूसरे उसको देख सकें। अब उनकी बातें जो अपने पूरे परिवार और लावलश्कर के साथ सफऱ पर निकल पड़े हैं। अपने ही लोगों के बीच में अनजान से बनते हुए उन्हें ये लगता था कि इसबार थोड़ा पहचान हो सकेगा। और इस बार लोगों में गाहे-बगाहे कोइ मिला भी लेकिन मदद के लिए कोई आगे नहीं आया। आये भी तो कैसे सबसे पहले अपने स्वार्थ जो निहित थे। कुछ लोगों ने अपने अपने दिल के बंद दरवाजे खोले भी लेकिन खुद को असुविधा होता देख असे बंद करने में कोई संकोच नहीं रखा। अपने गाँव घर से दूर आकर के लग जरुर रहा था कि इसबार कुछ नये दोस्त मिलेंगे कुछ नयी जगहों से परिचय हो सकेगा।जगहों से अपनी पहचान तो जरुर हुई लेकिन लोग से दूरी बरकरार रही। लोग उस अपरिचित से व्यक्ति के दूसरे प्रांत से होने के चलते एक अजीब सी निगाह से देखते थे। लगता था कि वो किसी अन्तरिक्ष से आया हो।
अचानक रात के 11 बजे एक अजीब सा हंगामा सुनाई दिया क्या है कुछ समझ में अनयास नहीं आया लेकिन जब ध्यान दिया तो सारा मामला साफ नजर आया। कोई उच्चक्का समान लेकर के भागने के फिराक में था कि नईनवेली दुल्हन जिसे गहनों से अभी लगाव की शुरूआत ही हुई है, या यों कहें कि पिया के बिना ट्रेन की सेज पर नींद नहीं आ रही रात थी सो रात जगती हुई काट रही थी। चोर आने से पहली नींद टूटी शोर मचाने के बाद सभी जग गये। पकडकर पहले को उसकी खूब धुनाई की तब जाकर के पुलिस के हवाले किया। गौर तलब है कि हल्ला सुनकर सबसे पहले सचेत हुआ, वही अजनबी सा व्यक्ति, हरकत में आकर के चोर को पकड़ा। बड़ा जोखिम का काम था क्योकि पता नहीं था कि उसके पास क्या हथियार है। सभी अब उस व्यक्ति के करीब आ गये मेलजोल बढ़ गया।खैर जो भी हुआ चोर के भाग्य से ही सही लेकिन उपेक्षित सा रहने वाला व्यक्ति भी अब सबों के साथ हो गया। सफऱ के अन्त तक वह भी अब लोगों से बातें कर सकता है। घटना या दुर्घटना ही सही लोगों को एक दूसरे के करीब तो आये। जो भी हो चोर मिलाए लोग-- हो सकता है अगलीबार उसके साथ ऐसी नौबत ना आये।

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