Thursday, December 20, 2007

सत्य की भाषा


एक जमाना था जब सत्य को सबसे उपर और पवित्र माना जाता था। लेकिन समाज में हुए बदलाव और परत दर परत पड़ते वक्त की धूल ने पूरे सत्य को धुँधला कर दिया है। सत्य कब और कहॉ चला गया किसी को इसका ख्याल ही नही रहा। आप भी कहेंगे क्या बकवास बातें हैं, लोग नून तेल लकड़ी की जुगा़ड में हैं, कौन सत्य वत्य की बीती बातें सुनता है। जनाब अब पानी सर से उपर बह रहा है, कहीं कोई बात होती है, तो उसके पीछे कुछ तो सच्चाई और हकीकत है। उदाहरण सामने है, पुलिसिया कहर से सभी परिचित हैं, लेकिन राज्य के मुख्य मंत्री ही इस बात को एक सिरे से नकांरें, तो बात कुछ हजम नहीं होती। आखिर हो भी तो कैसे एक दफा खुद ही सरकार के मुलाजिमों को सी.एम. साहेब को नहीं पहचानने से सारी वर्दी उतारने की धमकी खुले आम दे चुके हैं।अब वकालत करते है तो उनके ही आचरण पर सवालिया निशान उठते हैं कि सच क्या है। जनता या उसके जरिये चुने गए लोग जो सच को मिनरल वाटर की तरह पीते चले जा रहें हैं। यही मात्र एक उदाहरण नहीं है कई पड़े है,जैसे महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री की बातों को ही ले लें। जैसे जैसे दिल्ली की तरफ जाते हैं भींगी बिल्ली, सरीखा व्यवहार करते रहते हैं। किसानों का मसला हो या राज्य में विकास का मुद्दा हो केन्द्र को बरगलाने के लिए झूठ का ही सहारा लेते हैं यानि सच्चाई से कोसो दूर भागते हैं।

कुल मिला करके बोलें तो मानवता मर गई है, सच्चाई का भी लोप हो गया है। बचा हैं तो केवल और केवल ढकोसला, जो दिनों दिन सच्चाई की दूसरी भाषा बनते जा रहा है।इसके बारे में यदि कुछ भी बोलना होगा तो बोलेगा कौन, अब यह एक सवाल बना हुआ है। हाल में ही सर्वोच्च न्यायलय ने अपने पत्रकार मित्रों को भी आड़े हाथों लिया है। जैसे तैसे ही सही उनकी भी स्मिता पर यह कह कर अपना तुगलकी फरमान चलाया कि आप ने संविधान के विरूद्ध आचरण किया है। देश के विधिपालिका के कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया। हम पूछते हैं कि ये कौन होते कि इनकी गलतियों की पर्देदारी की जाए। यदि इनकी सुनें तो इनके हिसाब से ये चोरी भी करेंगे और सीना जोरी भी करेंगे। फैसला सुनाते सुनाते क्या जाने अपने आप को ईश्वर का ही दूसरा रुप समझने लगो हैं। खैर एक सीख तो मिली कि अब सच को छुपाना सरल नहीं होगा। लोग अपने बातों को फिर से सामने लाएगे चाहे किसी नेता के खिलाफ हो या अपने ही राष्ट्र के तथाकथित कर्णधारों की बातें। जिन्दाबाद जनता ..........।

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

भाई अगर झूठ का साथ देने वाली जनता ज्यादा हो तो....सच भी खो जाता है।....लेकिन अभी उम्मीद करता हूँ कि मरता तो नही होगा "सच"।

राजेश अग्रवाल said...

लिखते रहें, दिशा सही है।