Monday, June 9, 2008

जो देखा नहीं वो भी अपना लगे….


क्या आपको कभी ऐसा लगता है कि जब किसी दूरदराज़ में बैठे व्यक्ति से बात करते हैं, तो लगता है कि उससे पहले भी मिल चुके हैं या यूँ कहें कि वर्षों से उसे जानते हैं। मेरे साथ तो यह हमेशा ही होता है। मैं शहर दर शहर तो शुरुआती दौर से ही भटकता से रहा हूँ। इसी घुम्मन्तु प्रवृति के चलते कई बार नये नये लोंगों से मिलता रहता हूँ। कई बार फोन पर भी बातें करता रहता हूँ। हर बार एक नया ही दोस्त बना लेता हूँ। अनेक दफ़ा तो यही लगता है कि जिस व्यक्ति से मैं बाते कर रहा हूँ उससे तो वर्षों पहले मिल चुका हूँ और वो तो जैसे मेरे बचपन का ही दोस्त है। मैं पहले ये गौर नहीं कर पाता था लेकिन साल 2007 से इन बातों पर गौर किया तो पता चला कि हू-ब-हू ये बाते सोलहो आने सच हैं। वाकया यूँ सामने आया कि काम के सिलसले में मेरे हेड ऑफिस से मिला ऑडर ने ऑडर देनेवाले के आवाज़ में ऐसा अधिकार जता दिया कि, मैं तो उसे वर्षों से जानता हूँ। उस आवाज़ में पता नहीं क्या ऐसी बात लगी कि मैं तो समझ गया कि भाई दसकों से बिछड़ा यही मेरा वो दोस्त है, जो कि बचपन में बनारस से तबादला होने की वजह से बिछड गया था। बार बार उससे बात करने का मन करने लगा। लेकिन नया कार्य क्षेत्र होने के वजह से ये संभव नहीं हो सका। खैर काम के आपा धापी में मैं वो सारी बातें भूल गया। रह गया याद तो केवल और केवल वह आदेश। आगे का किस्सा सुनाऊँगा फिर कभी क्यों कि उसी ने जीवन में एक अच्छे दोस्त की कमी को पूरा किया है। उसने हम से कुछ माँगा नहीं है बस दिया ही दिया है। और मैं अभागा उसे आज तक कुछ भी नहीं दे पाया हूँ।
खैर बात ये है कि जिसे आप देख भी नहीं पाते हैं वो भी आपको अपना लगने लगे तो कैसा लगता है। मेरे दिमाग से वो एक कडी होती है एक दूसरे से जोडने की। मस्तिसक के लाख कोशिकाओं में हलचल होने लगती है, तरंगे अपना काम और ही तेजी से करने लगती हैं। शायद ये केवल मेरा मानना हो लेकिन कल्पना किजिए कि जिसे आपने देखा तक नहीं वो अगर आप कोई काम बिगाड़ देता है तो आप उससे गुस्से के मारे आपे से बाहर हुए जाते हैं अगर वही व्यक्ति आपसे माफी माँग लेता है तो आपका सारा गुस्सा काफूर होकर के गायब हो जाता है। लेकिन कई बार आपकी इस भावना का गलत इस्तेमाल भी होता है। हाल ही में एक टेलीफोन कम्पनी ने इसी भावना को विज्ञापन के रुप में इस्तेमाल किया है। कोई महालिंगम साहब हैं जो इस भावना को रख कर एक सर्विस देने वाली कम्पनी में फोन करते हैं जहाँ लोग आवाज़ बदल कर उनसे बातें करते हैं बदले में फोन को सुननेवाले लोग टाकटाइम पाते हैं। ये बात तो विज्ञापन की है लेकिन अगर इसके सही मायनों में लिया जाए तो आज भी लोग टेलीफोन पर यही कहते मिल सकते हैं....देखा भले ही ना हो लेकिन तुम तो लगे प्यारा ।

1 comment:

Anonymous said...

humne aap ki vicharo ko dekha ye acche hai , aaj duriya mitane me sahayak hai . just right good more--- Neha Kapoor,