Wednesday, July 9, 2008
चलो सजाओ दुकान आ गया राजनीति का मौसम
बाजार में हल्ला मचा कि गई अब कांग्रेस सरकार, वाम पंथियो ने अपना समर्थन वापस ले लिया। लगी सड़क पर सरकारी गाडियाँ तेज गति से दौडने, कोई नेता अपना गठजोड़ बैठा रहा है तो कोई अपनी फिराक में है कि इसबार तो समर्थन करने पर कुछ पारितोषिक के रुप में मंत्री पद मिल ही जाएगा। तो पिछले चुनाव में हारे राजनेता अपनी बारी के इन्तजार में हैं और चुनाव क्षेत्र में कूद पडे कि इसबार तो हरा कर के ही दम लेंगे और खोई हुई अपनी पगडी की लाज वापस लायेंगे। तो बाहुबली नेता अपने चमचों को इकट्ठा करने लेगे और चुनाव जीतने की जुगत भिडाने लगे। लेकिन किसी ने उस जनता कि सुध लेनी नहीं चाही जिसके दम पर अपनी राजनीति की दुकान चलाने वाले राजनेता इतरा रहें हैं। सबसे ज्यादा दुकान तो चल निकली है मिडिया के नाम के बडे रिटेल के माफिक सोच समझकर गणित बैठाने वालों की। मिडिया के हर एक खोमचे पर राजनेता नामक ग्राहक बैठा जनता को अपने पैतरे से अवगत करा रहा है। आँखे तरेर कर यह दिखा रहा है कि विरोधी पक्ष का समूल ही नष्ट कर डालेगा। लेकिन अन्दर अन्दर पकती खिचडी कुछ और ही दिखा रही है। विरोधियों के साथ ही मिलकर राजनीति की गाडी आगे बढाने का अवसर ढूँढ रहा है।किसी भी कीमत पर सरकार को बचाने का प्रयास कर रहा है। अपनी असफलता को भी नहीं जाहिर करना चाहता है। जनता के सामने यह तर्क कि हम जनता पर फिर एक बार चुनाव का बोझ नहीं डालना चाहते हैं। लेकिन मन कि इच्छा है कि कहीं कुर्सी ना चली जाए। सरकार से समर्थन वापस लेने का वामपंथियों के कई तर्क हैं जो कुछ हद तक सही लगते दिख रहे हैं।
लेकिन एक बात समझ से बिल्कुल ही परे है कि आखिर इतने साल साथ-साथ चलने के बाद कौन सी मजबूरी आ गयी जिससे सरकार से कदम से कदम मिलाने वाले अपने ही कदम पीछे लेने लगे। बात एक हो तो कहें मँहगाई सुरसा की तरह मुँह बाये जा रही है सरकारी सहायता तो दूर, कहा गया कि यह कुछ दिनों तक ऐसे ही बनी रहेगी। उपर से न्यूक्लियर समझौता भी भारी रुकावट पैदा कर रहा है सुचारु रुप से सरकार चलाने के लिए। खैर ये तो मुद्दे हैं जिन्हें सुनाकर मैं आपका कीमती वक्त बरबाद नहीं करना चाहूँगा। लेकिन दुकानदारी कि बातें जरुर सुनाउगा। पार्टी कार्यालयों में बडे जोर शोर से रंग रोगन होने लगे। पर्दे लगने लगे गद्दे बदले जाने लगे। अपने चुनाव क्षेत्र से आने वाले लोगों की जो राजनेता कभी सुध नहीं लेते था अब उनकी सेवा टहल में रात के बारह बजे भी दिखाई देने लगे। उनकी खातिरदारी में कोई कमी ना रह जाए इसलिए खानेपीने का प्रबंध चौबीसों घन्टे रहे इसलिए नये खानसामे को बुलाकर एक अलहदा रसोइ का ही प्रबंध किया गया है। इन सबों के अलावा अपनी उपयोगिता बनाए रखने के लिए गाहे-ब-गाहे नए और पुराने मुद्दों की सहायता ली जा रही है। विरोधी खेमे और सत्ता के खेमे दोनों में चक्कर लगाना जारी रखा गया है। अपनी पहुँच का इस्तेमाल करके मिडिया में भी वक्तव्य दिये जाने लगे जिससे अपने आप को खबरों में बराबर बना दिखाया जाए। अब अपनी राजनीति की दुकान सजाकर बैठे लोग बडे व्यापारी दिखने लगे जिससे सारी इनकी कही बातें सच प्रतीत होने लगी। बोली भी लगने लगी, सरकार बचाने के लिए मंत्री पद आपका इन्तजार कर रहा है स्वीकार करों...........।
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1 comment:
I think, it's the dynamics of politics that helped Govt of save deal. We have right to criticize our representatives but we all should give respect to Politics inspite of considering it as a Game or Shop.
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