Tuesday, July 15, 2008

दुखवा का से कहूँ......


अपनी इस परिस्थिती से कैसे रुबरु होउ कुछ समझ में नहीं आ रहा है। हर बार अपने जीवन का होना बडा ही निरर्थक लगता है। पिछले दिनों से यही धारणा मुझे अपने घेरे में ले लिया है। इस अवसाद से निकलने का कोई रास्ता नहीं निकल रहा है। लग रहा है कि सब कुछ छूट गया बेहद पीछे और पीछे। हर संभव अपने आप को बटोटरने की कोशिश करता हूँ।लेकिन समुद्र के गर्त में समाते हुए सब डूबता लग रहा है। अब लिखने का साहस नहीं मिल रहा है। लिखूँगा फिर कभी जब यह असह्य पीडा......... विदा मित्रों.......।

4 comments:

rakhshanda said...

lekin aisa kyon Rajeev ji?
kya dukh hai jo aapko likhne nahi de raha...khuda kare is se jaldi nikal aayen or aap ki nayi post dekhne ko mile....

शोभा said...

राजीव जी
ऐसा होता है कभी-कभी। किसी भी कारण से मनः स्थिति ऐसी हो जाती है। पर चिन्ता ना करें यह क्षणिक अवसाद है। दूर हो जाएगा। आप अधिक विचार ना करें।

Udan Tashtari said...

Aisa mood swing hota rahta hai. Bane rahiye. Jo dil me aaye likhiye. Achcha lagne lagega. Shubhkamanaa.

Anonymous said...

नर हो ना निराश करो मन को....