
कुछ दिनों पहले मैंने सोच ही लिया था कि अब फिर कभी इंडियानामा में कुछ भी नहीं लिखूँगा। लेकिन आस पास इतना कुछ घट चुका कि अब अगर मैं रुकता हूँ तो अपने इंडियानामा के नाम को सार्थक नहीं कर पा रहा हूँ। गुजरात से लेकर के कश्मीर तक जल रहा है। गुजरात में सैकड़ो किस तरह से अनाथ हुए ये सभी जानते हैं। हम और आप भले ही इन बातों को भूल जाएँ लेकिन जिन पे ये बीती है उसको लोग कैसे भूल सकते हैं। आतताइयों की रुह भी नहीं काँपती इन नीरीह लोगों के साथ ऐसी हरकते करते हुए। हालात तो ये तक हो गये कि लोगों के हस्पतालों में ले जाती एम्बेलून्सों पर भी बम का निशाना लगाया। कुछ उत्साही यगये लोगों को बचाने तो वो भी किसी आतंकी के शिकार बन गये। ये तो बातें उस प्रदेश की है जहाँ हर कोई अपने आप को सुरक्षित महसूस कर रहा था जो भी आता वहाँ को रोजगार और शासन की व्यवस्था की प्रशंसा किये बगैर नहीं जाता लेकिन अचानक से हुए इस हादसे ने वहाँ से लोगों के पलायन करने पर मजबूर कर दिया।
हम यों कह सकते हैं कि साल की शुरुआत ही कुछ ऐसी शर्मनाक रही जिसे याद करने पर शुद को भी शर्म आती है। आरक्षण का भूत एक बार फिर जगा और लोगों को बांटता गया। हर किसी के हाथ में कलम कम हथियार ज्यादा दिखने लगो। गुजरों की करतूत ने सरकार सहित देश को लगभग एक हजार करोड़ का नुकसान पहुँचाया। ऐसा नहीं कि आरक्षण मिल जाने से रातों रात उनकी तरक्की हो गयी। वहीं वो भूल गये कि हजार करोड का नुकसान पहुँचाने के बाद उनकी वसूली सरकार उन्हीं से करेगी,भले ही उसका रुप कोई और हो। अभी वो आग बुझी ही नहीं थी कि अपने नेताओं की संसद की करतूत ने हमें कहीं का नहीं छोडा। क्या सरकार को बचाने के लिए कोई ऐसा भपी कर सकता है ? जानवरों की मंडी की तरह बोलिया लगने लगी। बेशर्मी की हद पार करता तब दिखी जब तथा कथित नेता ने ये कहना शुरु किया कि लोग मेरे यहाँ खुद कहने आये थे कि देखिये मैं बिकने को तैयार हूँ आप खरीदेगें क्या। जैसे तैसे यह मामला धीमा पडा कि अहमदाबाद में आतंकियों की करतूत एक और जख्म दे गया। गुजरात के जख्मों पर अभी मरहम लगे नहीं थे कि कश्मीर की हरकत ने और शर्म से अपना सर झुका दिया। एक बार दान में दे जाने के बाद फिर से जमीन लेने की हरकत ने अपने ही इतिहास को झुठला दिया। हमारी बातों को कोई अन्यथा मतलब आप लोग ना निकालें। मैं केवल इस खून खराबे से अपने लोंगों को बचाना चाहता हूँ, ना कि प्रतिष्ठा का प्रश्न बना रहा हूँ। हर बार जाति और धर्म के नाम पर लोगों को बाँटने का काम किया जाता रहा है। हद तो तब होगयी कि जब राजनितिक पार्टियों ने चक्का जाम की घोषणा कर दी। इस चक्का जाम ने कितनों की जान ली ये गिनना तो मुश्किल है। हर जाम ने सैकडो को संकटमें डाल दिया। बेवजह लोगों के कारोबार में नुकसान सहित अनेकों परेशानियों से रुबरु होना पडा। लम्बे अन्तराल से मेरे मन में ये विचार कौंध रहे थे जिससे मजबूर होकर के मैंने फिर से अपने बातों का आपके सामने रखने का फैसला किया है। अब सवाल उठता है कि क्या हम इतने कमजोर हो गये हैं कि हरकोई आता जाता हम पर हमले करता जाएगा और हमारी रीढ को कमजोर करता जाएगा ? जागो मेरे दोस्तों जागों नाकाम करों इन दहशत गर्दों के इरादों को और इन मौका परस्त राजनेताओं को खदेड़ डालो अपनी इस मेहनत से बनाई गयी धरती से जिसे हम वसुन्धरा कहते हैं।
1 comment:
विचारणीय आलेख!!
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