Monday, May 16, 2011

अँधेरे से मुकाबला जारी...


अगर कोई जबरदस्ती कहे कि मैं आपका ही हूँ, और आपने मुझे छोड दिया है। तो ये बातें उसी तरह लगती हैं जैसे सोनिया गाँधी से नरेन्द्र मोदी कहे कि मैं तो कांग्रेस का ही हूँ और आपने मुझे छोड दिया है। जो खुलेआम आपकी इज्जत की धज्जियाँ उडा दे,सरेआम आपको गालियों से सराबोर कर दे वही आप से कहे कि मैने तो कुछ किया ही नहीं तो आश्चर्य होना स्वाभाविक है। मेरे साथ ये कई बार से हो रहा है, हर बार आरोप पर आरोप ही लग रहे हैं। चलो इसे भी सहते हैं। कहते हैं कि हमारे इसी भारत वर्ष में कृष्ण और शिशुपाल भी हुए थे। कृष्ण ने वचन दे रखा था कि एक लगातार शिशुपाल 100 गलतियाँ लगातार करेगा तभी उसे सजा देगें वरना नहीं। लेकिन गलतियाँ पूरी होने के बाद शिशुपाल मारा भी गया। मैं ना तो कृष्ण हूँ ना ही कभी कोई ऐसा व्यवहार करने की तमन्ना रखता हूँ। लेकिन हाँ ये जरुर है कि हिसाब किताब जरुर रख रहा हूँ। क्या पता कभी इंडियानामा में कुछ नया लिखने को मिल जाए आज कल मैं इंडियानामा में समाज के उस स्वरुप को दिखाने की कोशिश कर रहा हूँ, जो सीधा लोगों से जुडा है। उस कडी में मैं रहूँ या कोई और रहे। लेकिन हकीकत यही है कि बदलते दौर में बगैर अपनी गलतियों को देखते हुए आरोप लगाना आसान हो गया है। मैं मानता हूँ अगर मैं किसी पर आरोप लगा रहा हूँ तो कम से कम आचरण तो ऐसा करुँगा कि मुझे दोषी नहीं ठहराया जा सके। लेकिन ऐसा नहीं है। पिछले ब्लॉग में मैने लिखा ही है कि पंडित सोई जो गाल बजावा अक्षरस: सही है। हल्ला मचाओ किसी की सूनो नहीं अपनी मन गढंत बातें घूम-घूम कर कहो हर तरह का क्षद्म उपयोग में लाओ जिससे लोग तुम्हारी झूठी बातों को भी सच मानने लगे। यही है आज कल अपने आप को काबिल साबित करने के तरीके।
अब लिजिए ना पिछले ही दिन बंगाल सहित बाकी राज्यों में चुनाव हुए। उन चुनावों में क्या जीत कर आने वाले दूध के धुले हुए, हैं मेरे ख्याल से तो बिल्कुल नहीं। ममता बनर्जी हो जयललिता दोनों ही अपने लोगों के सामने जाहिर किए गए उसूल से विपरीत हैं। 1991 में जयललिता के यहाँ गए जाँच दल ने गहने कपडे सहित पैसे और मँहगी साडियों के खान को ही सामने लाया। वहीं ममता बनर्जी तो कहतीं कि वो हवाई चप्पल और सूती साडी ही पहनी हैं, लेकिन चुनाव के दौरान प्राइवेट जेट और हैलीकॉप्टर की सेवा लेने में हिचकी तक नहीं। आखिर पार्टी के पास इतना पैसा आया कहा से। इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
ये बडे लोग और राजनेता हैं किसी आम इन्सान के बारे में बात करें। मेरा एक मित्र है जो आजकल अपने परिवार से अलगा एकाकी रह रहा है उसके मुताबिक उसके परिवार के सदस्य उसका साथ इसलिए छोड दिया क्योकि वो गलत है। लेकिन मैने जिस तरह के साक्ष्य और सबूत देखे उसमें यही लगता है कि गलत वो नहीं ब्लकि उसके परिवारवाले हैं। लेकिन लोगों ने उसके बारे घूम घूम कर ऐसा कुप्रचार किया जिससे कई बार तो उसके हिम्मत टूटते हुए मैने देखा। फिर मैने उसे ढाढस बँधाया और कहा कि मानव हो कभी भी हिम्मत नहीं हारो । ये तुम जानते हो और तुम्हारा ईश्वर जानता है कि तुम कितने सच्चे हो, इसलिए कभी ये मत सोचो कि इन्साफ नहीं मिलेगा। जरुर मिलेगा ये तो तुम्हारी परीक्षा की घडी है कि तुम विकट परिस्थितियों में कैसा आचरण रख रहे हो। कुछ दिनों के बाद धीरे धीरे जीवन सामान्य होने की कगार की तरफ बढने लगा।
इस बात से मुथे यही कहना है कि कष्ट उसे बहुत हुआ क्योकि गलत बाते उसे ना तो जीने देती थी और ना ही मरने क्योकि कलंक लेकर ना तो जीया जा सकता है और ना ही मरा। ईश्वर दुशमन को भी इस परिस्थिती में ना जाले। लेकिन सामनेवाले बडे चैन से जीवने के मजे जी रहे थे। मुझे तो लगता है कि ऐसे आरोप लगाने वाले और आरचरण करने वालों के पीछे कोई ऐसी मानसिकता होती होगी जिससे उनके अहं की संतुष्टी मिलती होगी कि हाँ वो श्रेष्ठ हैं। मैं तो केवल यही कहूँगा......
पी जा हर अपमान और कुछ चारा भी तो नहीं !
तूने स्वाभीमान से जीना चाहा यही ग़लत था
कहाँ पक्ष में तेरे किसी समझ वाले का मत था
केवल तेरे ही अधरों पर कड़वा स्वाद नहीं है
सबके अहंकार टूटे हैं,वो अपवाद नहीं है
ग़लत परिस्थिति ग़लत समय में ग़लत देश में होकर
क्या कर लेगा तू अपने हाथों में कील चुभोकर
चाहे लाख बार सिर पटको दर्द नहीं कम होगा
नहीं आज ही, कल भी जीने का यह ही क्रम होगा
माथे से हर शिकन पोंछ दे, आँखों से हर आँसू
पूरी बाज़ी देख अभी तू हारा भी तो नहीं।

2 comments:

Sudeep Gandhi said...

राजीव जी आपने तो एक तरह से आइना ही दिखा डाला है, शायद आपके से व्यक्तिगत रुप से घटित घटना है लेकिन सच है। आपके लेख ने मुझे भी झकझोर कर रख दिया कि कोई ऐसा भी हो सकता है। -सटीक है -सुदीप

Rajiv Ranjan Singh said...

आपके विचारों के लिए धन्यवाद सुदीप जी, कोशिस यही है कि सच और झूठ को सामने लाकर के रखूँ शायद कामयाब हो भी सकूँ, या चट्टानों पर सर पटकूँ। लेकिन आपके हौसले ने बल दिया है हारुँगा नहीं।