Sunday, May 15, 2011

अभिमान...


कुपथ कुपथ जो रथ दौडाता पथ निर्देशक वह है, लाज लजाती जिसकी कृति से नीति उपदेशक वह है....। ये बातें मैंने बचपन में ही सुनी थी। लेकिन अनयास आज याद आ गया। दरअसल अपने ही इमेल को देखते देखते कई बातें ऐसी देखी, जिसे देखकर पहले तो हँसी आई, फिर सोचा चलो लोगों का मन है जुबान है मीटर तो लगा है नहीं जो मन में आए दूसरे पर थोप दिया। चलो अच्छा ही है जिसको जो मर्जी कह ले, किसने रोका है। आरोप ही लगाने है कोई इसके बारे में पूछता थोडे ही ना। एक कहावत और भी है---पंडित सोई जो गाल बजाए...।स्पष्ट है कि लोग ज्ञानी उसी को मानते हैं जो अपनी बात मनवाने को लिए हर तरकीब का इस्तेमाल करे। अपनी बातों को सही साबित करने लिए भले किसी और पर लांक्षन ही क्यों ना लगाने पडे पीछे नहीं हटेंगे। ये भारत वर्ष है लोग हकीकत थोडे ही ना जानने की कोशिश करते हैं, आइने के आगे के चेहरे को देखते हैं,आइने के पीछे छुपे चेहरे को देख ही नहीं पाते हैं। ना ही उस चेहरे के पीछे की मानसिकता को समझ पाते हैं। मैं बेहद मुश्किल से उस चेहरे को देखा, देखते ही अचंभिक हुआ और थोडा सहमा भी आखिर कोई ऐसा भी हो सकता है क्या। मैं अपने आप को ऐसा अनुभवी नहीं मानता हूँ कि हर बारीकियों को समझ सकूँ, लेकिन कहते हैं-आवश्यकता पडने पर ही आविष्कार होता है। मेरे साथ ये शब्दश: चरितार्थ होता है। पिछले एक साल की अवधि ने कई बार ये अनुभव दिलाए कि जिससे आज मैं ये कह सकूँ कि – "हाँ मैं छला गया"। मेरा मन तो पहले यही किया कि सच्चाई दिखा दूँ लेकिन मेरे खुद के संस्कार ने ऐसा करने से रोका, सोचा यही कि –कीचड में जाने पर खुद अपने ही पैरों में कीचड लगते हैं..। मैने ना तो पलट कर कुछ जवाब ही दिया और ना ही अपनी बात को ही रखी लोग समझते गए कि मैं गलत हूं, लेकिन जो बातें और हकीकत मेरे सामने आई पूरे कुनबे को देखकर और भी हँसी आई कि लोपुलता किसी को इतना भी घेर सकता है कि सच्चाई जानते हुए भी सच्चाई से मुँह मोडे और ये कहे कि ये तो मेरी मजबूरी है। खैर जो भी हो लेकिन आज के परिप्रेक्ष्य में तो बेहद सही है। एक बात और है जब लोग सच्चाई जानते हुए भी सच्चाई से आनजान बनते हैं तो उसे-धृटराष्ट्र मोह की संज्ञा देते हैं। इसके जरिए यही साबित होता है कि उनका सोना सोना है दूसरे का खरा सोना भी पीतल। हर बार धृटराष्ट्र मोह से ग्रसित लोग अपने ही आँगन के नीम को कल्पतरु कहते हैं। मैने कभी भी किसी को ऐसा सोंचने का मौका नहीं दिया, हर किसी को बराबर मौका दिया। ना तो मैं कभी याचक रहा हूँ, ना ही कभी किसी से कोई उम्मीद ही बाँधी है। क्योकि मेरे ही बुजर्गों ने मुझे सीख दी है कि –अपनी भुजा की ताकत पर विश्वास करो। आज शहर दर शहर आने जाने पर भी अपनी भुजा की ताकत के बदौलत ही अपनी पहचान और जगह बनाई है। भले ही इसके लिए कोई घमंड कहे या कुछ और। लेकिन एक बात दृढ सत्य है कि मुझे अपने आप पर अभिमान है। आज जो साक्ष्य मिले हैं उन्हे देखकर तो यही लगता है कि, कपडे बदलने के मानिन्द विचार तो बदले ही,लोगों ने अपने संबंध को भी बदला साथ में नए लोगों के आगोश में भी घिरते चले गए। हाँ बात की शुरुआत जहाँ से मैने की थी फिर एक बार वहीं आता हूँ, लोग नीति और ज्ञान आजकल वही दे रहे हैं जो सदैव नीति विरुद्ध काम करते रहे हैं। समाज में ये बदलाव होरहै है चाहे वो राजनेता हो या कोई आम इन्सान। बदलते परिवेश ने आपसी प्यार को तो कब का खा गया, लोक लाज को भी सुरसा की तरह लील रहा है। आज यही धारणा है कि पैसा कमाना है भले ही किसी तरह से हो पैसे के बल पर दूसरे को नीचा दिखाना है चाहे वो किसी तरह से क्यो ना आए कुछ दिन पहले एक बात प्रचलित हुई थी कि-- पैसा खुदा से कम नहीं है...। मेरा मानना है कि ऐसी मानसिकता रखनेवालों के लिए गहने और पैसे ही सबकुछ हैं, पैसा ही मीत पैसा ही खुदा पैसे से बढकर कुछ नहीं। आप भी कहेंगे कि कहाँ कि बाते कह रहे हैं तो मैं मानता हूँ कि देश में जो पैसे को लेकर खेल मचा है वो आज हर घर में प्रवेश कर गया है। खासकर वहाँ तो और जहाँ दिखावे की होड है। लेकिन अगर जिसने भी पैसे के लिए अपने ज़मीर और उसूल को नही छोडा मुझे लगता है उसे यही सहना पडा होगा...
जब जब मैंने अपनी राह ख़ुद तय किया
जब जब मैंने उन्हें 'ना' कहा,
तब तब या तो मुझे
आग के दरिया में कूदना पड़ा
या उन्होंने अपने आरोप और अपमान के अग्निदंश से
मुझे जीवित लाश बना दिया।
घृणा का कोश लिए फिरते हैं वे अपने प्राणों में;
और जब भी मेरे होठों से निकलता है एक 'ना'
तो वे सारी नफ़रत
सारा तेजाब
उलट देते हैं मेरे मुँह और आत्मा पर।

2 comments:

Neha Kapoor said...

बेहद सही, खास कर के आपके छोटे मुहावरे भी कई शब्दों का अर्थ आप में समेटे हुए हैं, सराहनीय-- नेहा।

Rajiv Ranjan Singh said...

मैने अपने ब्लॉग का नाम इन्डियानामा इसलिए ही रखा है कि देश के हर कोने की संस्कृति आपके सामने ला सकूँ-- आपके समर्थन के लिए धन्यवाद -राजीव