Wednesday, March 28, 2012

हर कोई एकाकी है...


हम जब आज में जीते हैं तो हमें ये भी ध्यान रखना चाहिए कि आखिर आने वाला दिन कैसा होगा,इस आज के साथ बदलते लोगों और बदलते परिवेस को भी समझना बेहद जरुरी है। जिसे हम समझते और देखते भी हैं। लेकिन कभी-कभी कुछ बातें बरबस हमें अपनी तरफ खींच लेती हैं, और याद दिलाती हैं कि आखिर कुछ तो है जो असहज है। सटीक बैठती हैं ये पंक्तियाँ इस कसमकस के लिए,.....
ख़ून में लथ-पथ हो गये साये भी अश्जार के
कितने गहरे वार थे ख़ुशबू की तलवार के
इक लम्बी चुप के सिवा बस्ती में क्या रह गया
कब से हम पर बन्द हैं दरवाज़े इज़हार के
आओ उठो कुछ करें सहरा की जानिब चलें
बैठे-बैठे थक गये साये में दिलदार के
रास्ते सूने हो गये दीवाने घर को गये
ज़ालिम लम्बी रात की तारीकी से हार के
बिल्कुल बंज़र हो गई धरती दिल के दश्त की
रुख़सत कब के हो गये मौसम सारे प्यार के।

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