Sunday, March 11, 2018

मैं भी किसान हूँ




जिस देश में नारा हो जय जवान जय किसान , वहाँ किसानों को सडक पर उतर कर अपना हक माँगना पडे, ये तो ऐसे ही लगता है कि भगवान को जय कहने वाले लोगों से भगवान खुद कह रहें हो कि तुमने मुझे सदियों से भूखा रखा है। दिल सोचने पर मजबूर होता है कि आखिर मैं भी तो किसान हूँ, क्या मेरे साथ भी किसी दिन इसी तरह का माहौल सामने आएगा। हालाकि खेत से मैं दूर इस महानगर में एक किसान से मजदूर हो गया हूँ, लेकिन दिल के कोने अंदरे में किसान की आतमा ही जग रही है। पिछले 10 साल से महाराष्ट्र के किसानों की हालत में बडे बारिकी से देख रहे हूँ आर समझ भी रहा हूँ। जितने किसानों ने आत्म हत्या की है उतने तो किसी महामारी में भी नहीं मरते। इनकी सुध लेने के लिए किसी के अंदर भावना जगी है इस बात पर संदेह ही हो रहा है।
                          इस मामले सॆ किनारा करने वाले ये जरूर कह सकते हैं कि ये किसी दल के जरिए प्रायोजित है इस लिए इस पर ध्यान देना ज्यादा जरूरी नहीं है। लेकिन सोचिए जिस किसान का काम खेतों में अपने खून पसीने से सींचकर फसल उगाना है वो तकरीबन 200 किलोमीटर तक पैदल चला आ रहा है। पिछले सात दिनों से लगातार 30 हजार किसान महाराष्ट्र की राजधानी मुबई की ओर आ रहे हैं लेकिन सरकार की चुप्पी कह रही है कि इनके बारे में सोचने वाला शाय़द ही कोई व्यक्ति है। अपने कर्ज माफी , उपज की लागत का 50 प्रतिशत लाभ , नदियों को जोडने की माँग जिससे सिंचाई सुगम हो, स्वामीनाथन कमिटी की सिफारिश पर अमल, जंगल जमीन पर खेती करने वालों को सहायता और सहुलियत , किसान सहायता राशि 600 रुपए से बढा कर 3000 रुपए करने की माँग करने वाले ये किसान कष्टदायक यात्रा कर कर आर्थिक राजधानी पर पहुच रहे हैं। लेकिन इनकी बात सुनने के लिए इक्का दुक्का नेता तो जरूर आ रहे हैं लेकिन किसी ने ये आश्वासन नहीं दिया कि आपकी सारी समस्या को दूर कर दिया जाएगा । नासिक से लेकर मुबई की काली स्याह सडके लाल झंडों से भर गईं लेकिन किसानों की समस्या का निदान निकालने के लिए आगे आने अपने लोग इस सोच में हैं कि कहीं अनकी सफेद पोशाक पर दाग ना लग जाए।
                       मेरे दिल का किसान यही कहता है कि जमाना बदल रहा है लेकिन हमारे लिए नहीं, उनके लिए जो छल और प्रपंच का इस्तेमाल करते रहते हैं और आगे बढने के लिए दूसरे को गला भी घोंट दें तो कम ही महसूस करते हैं। एक एक किसान का दर्द, उसके पैरों में उठे छाले, धूप से गर्म हुई सडकों पर चलते समय पांव का लडखऱडाते रहना., चलते चलते थक के प्यास से गले सूखना इन सबको अपने अंदर महसूस कर सकता हूँ।
महज एक दिन और शेष है शायद इन भाइयों, न्याय मिले और हँसी खुशी ये अपने अपने .. घर को लैट सके ...!
 के कवि किसान ..

बोओ, फिर जन मन में बोओ,
तुम ज्योति पंख नव बीज अमर,जग जीवन के अंकुर हँस हँसभू को हरीतिमा से दें भर।

पृथ्वी से खोद निराओ, कवि,मिथ्या विश्वासों के तृण खर,सींचो अमृतोपम वाणी कीधारा से मन, भव हो उर्वर।  


   




4 comments:

ABHA said...

I appreciate your views..

Sudeep Gandhi said...

हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया में स्वागत है , विचार अच्छे हैं ...।

Neha Kapoor said...

Nice ,, Good topic ,, Govt should listen their demand ...

Rajiv Ranjan Singh said...

धन्यवाद आप सब का