Friday, March 16, 2018

मन और अन्तर्मन एक साथ



मैं दरअसल आप सबों के मुखातिब होते रहा हूँ .. लेकिन आज कुछ अलग प्रयास हैं। प्रयास ये है कि मैं अपने विचार के साथ अपने अंन्तर्मन का विचार दोनों एक एक पंक्तियों में आपके सामने लाने की कोशिश कर रहा हूँ। इन दोनों विचारों में तारतम्य बेहद ही खास है कि जिससे ये अंतर ही नहीं महसूस होता है कि कौन से शब्द मेरे है और कौन से शब्द मेरे अन्तर्मन के। अब उन शब्दों को आपके सामने रखता हूँ।

ये दिल है कि बार बार कहता है ..
क्या कहता है..? 
ये बादल की रंगत, 
ये तितलियों की झिलमिलाहट, 
ईशारे करता है..
दूर क्षितिज के पीछे, 
चुपचाप कोई सपना पलता है ..!
ये सतरंगी बादलों पर बने इन्द्रधुष 
सा कोई अपना हर पाल आँखों में होता है, 
कभी सामने तो कभी ओझल होता है ..
बादलों का आना जाना हर पल होता है .., 
बूँदों का किस्मत धरती पर बरस कर 
सबकी प्यास मिटाकर घरती में खो जाना ही होता है ..।





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